तिल
तिलहन फसलो में भारत की सबसे पुरानी और खास फसल है जिसका इतिहास भारत में करीब 5 हजार साल पुराना मिलता
है तिलहन उन फसलो को कहते है जिनसे हमे वनस्पति तेल मिलता है खरीफ की इस तिलहन फसल के बीजो से करीब 50 फीसदी तेल पाया जाता है दुनियाभर में तिल के उत्पादन का 25 फीसदी हिस्सा अकेले भारत में होता है जो की मूँगफली से भी ज्यादा है |
तिल की खेती के लियें जलवायु –
तिल के लिए शीतोषण जलवायु उपयुक्त होती है
मुख्यतः बरसात या खरीफ में इसकी खेती की जाती है यह बहुत ही ज्यादा बरसात या सूखा
पड़ने पर फसल अच्छी नहीं होती हैI
खेत की तैयारी –
इसके लिए हल्की भूमि तथा दोमट भूमि अच्छी होती
हैI यह फसल पी एच 5.5 से 8.2 तक की भूमि में उगाई जा सकती हैI फिर भी यह फसल बलुई दोमट से काली मिट्टी में भी उगाई जाती है I और गर्मी में रबी की फसल कटने के बाद खेत की दो-तीन बार जुताई करने के
बाद मिट्टी की जांच करवानी पड़ती है। उसके बाद संभव हो तो जिप्सम का प्रयोग करते
हैं, जिससे खेत की मिट्टी भुरभुरी हो जाती है।
तिल की खेती उन्नत
किस्में –
तिल की उन्नत किस्मो की बात की जाये तो इनमे मुख्य रूप से निम्न है –
टी.के.ज़ी.-21, टी.के.ज़ी.-22, टी.के.ज़ी.-306,
जे.टी.एस.-8, जी.टी.-1 जी.टी.-10, ओ.टी.-7, एन.-32, टाईप 4,
टाईप12, टाईप13, टाईप78,
शेखर, प्रगति, तरुण,
कृष्णा, एवम बी.63
किस्मे हैं |
तिल की बीज बुवाई –
फसल को आमतौर
पर छिटक कर बोया जाता है, जिसके फलस्वरुप निराई-गुड़ाई करने में बाधा आती है। फसल से अधिक उपज पाने
के लिए कतारों में बोनी करनी चाहिए। छिटकवां विधि से बुवाई करने पर 1.6-3.80
प्रति एकड़ बीज की आवश्यकता होती है। कतारों में बोने के लिए सीड
ड्रील का प्रयोग किया जाता है तो बीज दर घटाकर 1-1.20 किग्रा
प्रति एकड़ बीज की आवश्यकता होती है। बोने के समय बीजों का समान रुप से वितरण करने
के लिए बीज को रेत (बालू), सूखी मिट्टी या अच्छी तरह से सड़ी
हुई गोबर की खाद के साथ 1:20 के अनुपात में मिलाकर बोना
चाहिए। मिश्रित पद्धति में तिल की बीजदर एक किग्रा प्रति एकड़ से अधिक नहीं होना
चाहिए। कतार से कतार और पौधे से पौधे के बीच की दूरी 30x10
सेमी रखते हुए लगभग 3 सेमी की गहराई पर बोना
चाहिए।
खाद एवं उर्वरक -
उर्वरको का
प्रयोग भूमि परीक्षण के आधार पर करना चाहिएI 80 से 100 कुंतल सड़ी
गोबर की खाद खेत तैयारी करते समय आख़िरी जुताई में मिला देना चाहिएI इसके साथ ही साथ 30 किलोग्राम नत्रजन, 15 किलोग्राम फास्फोरस तथा 25 किलोग्राम गंधक प्रति
हेक्टेयर प्रयोग करना चाहिएI रकार तथा भूड भूमि में 15
किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर प्रयोग करना चाहिएI नत्रजन की आधी मात्रा तथा फास्फोरस,पोटाश एवम गंधक
की पूरी मात्रा बुवाई के समय बेसल ड्रेसिंग में तथा नत्रजन की आधी मात्रा प्रथम
निराई-गुडाई के समय खड़ी फसल में देना चाहिए I
फसल में जल प्रबंधन –
तिल की खेती
बरसात के मोसम में होने के कारण हमे इसमें
सिचाई की आवश्यकता तब तक नहीं पढ़ती जब तक की बरसात ना हो तिल की फसल में
खरपतवार प्रबंधन-खरीब की फसल होने की वजह
से खरपतवार तिल की फसल का एक अहम् रोग
है खरपतवार के लिए बुवाई से पहले 3-4 सप्ताह तक निदाई –गुड़ाई कर खरपतवार निकाल लेना चाहिए और अगर खरपतवार फसल के छोटे होने पर हो तो
एलाक्लोर50 ई.सी. 1.25 लीटर प्रति हेक्टेयर बुवाई के बाद 2-3दिन के अन्दर प्रयोग
करना चाहिएI
खरपतवार प्रबंधन –
किसान भाईयो
प्रथम निराई - गुडाई बुवाई के 15 से 20 दिन बाद दूसरी 30 से 35
दिन बाद करनी चाहिएI निराई - गुडाई करते समय
थिनिंग या विरलीकरण करके पौधों के आपस की दूरी 10 से 12
सेंटीमीटर कर देनी चाहिए I खरपतवार नियंत्रण
हेतु एलाक्लोर 50 ई.सी.1.25 लीटर प्रति
हेक्टेयर बुवाई के बाद दो-तीन दिन के अन्दर प्रयोग करना चाहिए I
रोग प्रबंधन –
इसमे तिल की
फिलोड़ी अवम फाईटोप्थोरा झुलसा रोग लगते है | फिलोड़ी की रोकथाम के लिए बुवाई के
समय कूंड में 10जी. 15 किलोग्राम या मिथायल – ओ - डिमेटान 25 ई.सी 1 लीटर की दर से
प्रयोग करना चाहिए तथा फाईटोप्थोरा झुलसा की रोकथाम हेतु 3 किलोग्राम कापर आक्सीक्लोराइड
या मैन्कोजेब 2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से आवश्यकतानुसार दो - तीन बार
छिडकाव करना चाहिएI
कीट प्रबंधन –
तिल में
पत्ती लपेटक अवम फली बेधक कीट लगते है I इन कीटों की रोकथाम के लिए क्यूनालफास 25
ई.सी. 1.5 लीटर या मिथाइल पैराथियान 2 प्रतिशत चूर्ण 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर
के दर से छिडकाव करना चाहिए I
तिल की फसल की कटाई -
तिल की
पत्तियां जब पीली होकर गिरने लगे तथा पत्तियां हरा रंग लिए हुए पीली हो जावे तब
समझना चाहिए की फसल पककर तैयार हो गयी हैI इसके पश्चात कटाई पेड़ सहित नीचे से करनी
चाहिएI कटाई के बाद बण्डल बनाकर खेत में ही जगह जगह पर
छोटे-छोटे ढेर में खड़े कर देना चाहिएI जब अच्छी तरह से पौधे
सूख जावे तब डंडे छड आदि की सहायता से पौधों को पीटकर या हल्का झाड़कर बीज निकाल
लेना चाहिएI
उपज या पैदावार –
उपरोक्तानुसार
अच्छी तरह से फसल प्रबंध होने पर और तकनीकी तरीको से खेती करने पर तिल की पैदावार
7 से 8 कुन्तल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है I
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