अगर आप अदरक की खेती करना चाहते है तो आपको बहुत ही फायदा हो सकता
है क्योंकि इसकी खेती में बहुत ही कम खर्च में अधिक आमदनी होती है। अदरक की खेती
को अगर कृषि वैज्ञानिको द्वारा बताये गए तरीको से किया जाए तो किसानो को अच्छी फसल
की प्राप्ति हो सकती है। अदरक के तीन किस्म ऐसे है जो हमारे देश में भली भाती की
जाती है एक सुप्रभात दूसरा सुरुचि और तीसरा सुरभी। तो आइये जानते है कैसे करे अदरक
की खेती।
जलवायु –
अदरक गर्म और आर्द्र जलवायु में अच्छी तरह से बढ़ती है. मतलब इसके
खेती समुद्र स्तर से ऊपर 1500 मीटर की ऊंचाई और आंशिक छाया में अच्छी तरह से पनपती
है. लेकिन इसके सफल खेती के लिए इष्टतम ऊंचाई 300-900m है. मध्यम वर्षा बुवाई से rhizomes के अंकुर तक,
और
इसके सफल खेती के लिए बढ़ती अवधि में काफी भारी और अच्छी तरह से वितरित बारिश और
कटाई से पहले शुष्क मौसम के साथ एक महीने के अवधि तक 28 ° -35 डिग्री सेल्सियस के तापमान इष्टतम आवश्यकताओं में से
हैं| प्रारंभिक बुवाई के बेहतर विकास और उच्च पैदावार में मदद करता है|
भूमि का चयन और तैयारी –
किसान चाहे तो अदरक की खेती किसी भी तरह के भूमि पर कर सकते है
लेकिन उचित जल निकास वाली दोमट भूमि में अदरक की खेती को सबसे सर्वोतम माना जाता
है। मांदा का निर्माण करना भी अदरक की खेती के लिए अच्छा होता है। मांदा निर्माण
से पहले खेत की अच्छी तरह से जुताई कर के उसे भुरभुरा बना लेना चाहिए। अदरक की
खेती को खरपतवार रहित रखने के लिए और मिट्टी को नरम बनाये रखने के लिए आवश्यकता
अनुसार खेत की जुताई करते रहना चाहिए ।
अदरक की किस्मे –
1. आईआईएसआर वरदा- यह किस्म 200 से 210 दिन में तैयार हो जाती है, इसकी पैदावार 22 से 23 टन (ताजे कन्द) प्रति हेक्टेयर है|
2. सुप्रभा- यह किस्म 225 से 235 दिन में तैयार हो जाती है, इसकी पैदावार 16 से 17 टन (ताजे कन्द) प्रति हेक्टेयर है|
3. सुरुचि- यह किस्म 215 से 225 दिन में तैयार हो जाती है, इसकी पैदावार 11 से 12 टन (ताजे कन्द) प्रति हेक्टेयर है|
4. सुरभी- यह किस्म 220 से 230 दिन में तैयार हो जाती है, इसकी पैदावार 17 से 18 टन (ताजे कन्द) प्रति हेक्टेयर है|
5. हिमगिरी- यह किस्म 225 से 235 दिन में तैयार हो जाती है, इसकी पैदावार 13 से 14 टन (ताजे कन्द) प्रति हेक्टेयर है|
6. आईआईएसआर महिमा- यह किस्म 195 से 205 दिन तक तैयार हो जाती है, इसकी पैदावार 23 से 24 टन (ताजे कन्द) प्रति हेक्टेयर है|
7. आईआईएसआर रजाता- यह किस्म 195 से 205 दिन तक तैयार हो जाती है, इसके पैदावार 22 से 23 (ताजे कन्द) प्रति हेक्टेयर है|
8. इसके आलावा अन्य किस्में- कार्तिका, अथिरा आदि उन्नत किस्में भी 200 दिन में तैयार हो जाती
है|
अदरक की बुवाई –
1. अदरक (Ginger) की बुवाई के समय उन्नत
किस्म का चुनाव करे, इसकी बुवाई फरवरी से
लेकर मई तक की जा सकती है| अदरक की बुवाई करने का
उपयुक्त समय मार्च से अप्रेल तक रहता है|
इसकी
समय पर बुवाई करने से अच्छी उपज प्राप्त होती है|
2. बुवाई की कंदों का भार प्रत्येक कन्द के 1 से 2 आखं के साथ 20 से
25 ग्राम होना उचित रहता है| बुवाई से पहले कंदों को
2 ग्राम कार्बेन्डाजिम या बाविस्टिन या 2.5 ग्राम मेन्कोजेब से प्रति किलोग्राम
बीज को पानी में 25 से 30 मिनट डुबो कर उपचारित करना चाहिए| उसके बाद उनको छाव में सुखाकर बुवाई करनी चाहिए|
3. इसके लिए लाइन से लाइन की दुरी 20 से 30 सेंटीमीटर और पौधे से
पौधे की दुरी 15 से 20 सेंटीमीटर इसकी रोपाई 5 से 10 सेंटीमीटर गहराई पर करनी
चाहिए| अदरक (Ginger) की रोपाई के लिए 23 से 27 क्विंटल प्रति हेक्टेयर बीज की
मात्रा उपयुक्त रहती है|
खाद एवं उर्वरक –
अदरक की फसल के लिए कितना खाद व उर्वरक होना चाहिए इसका पता लगाने
के लिए मृदा जांच अनिवार्य है। यदि किसी कारणवश मृदा जांच ना हो सके तो उस स्थिति
में गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद 20-25 टन भूमि की तैयारी से पूर्व खेत में मिला
देनी चाहिए। नाइट्रोजन की आधी मात्रा तथा फास्फोरस एवं पोटाश की सम्पूण मात्रा
प्रकन्द लगाते समय डालना हैं तथा नाइट्रोजन की शेष मात्रा को बुवाई के 50-60 दिन
बाद खेत में डालकर मिट्टी चढ़ानी चाहिए।
सिंचाई / जल प्रबंधन –
अदरक की खेती में बराबर नमी का बना रहना बहुत जरुरी होता है इसलिए
इसकी खेती में पहली सिंचाई बुआई के तुरंत बाद कर देनी चाहिए। फिर भमि में नमी
बनाये रखने के लिए आवश्यकता अनुसार सिंचाई करते रहना चाहिए। सिंचाई के लिए टपक
पद्धति या ड्रिप एरीगेशन का प्रयोग किया जाए तो और भी बेहतर परिणाम सामने आता है।
खरपतवार नियंत्रण –
अदरक (Ginger) की खेती में
आवश्यतानुसार खरपतवार की लिए निराई गुड़ाई करते रहना चाहिए, यदि कीटनाशक से नियंत्रण चाहते है, तो 3.5 पेंडामेथालिन को 800 से 900 लिटर पानी में मिलाकर
प्रति हेक्टेयर बुवाई के 2 दिन के अंदर तक छिड़काव करना चाहिए| जिससे खरपतवार का जमाव ही नही होगा|
अदरक के रोग और रोकथाम –
अदरक की फसल में मृदु विगलन,
जीवाणु
म्लानि, पर्ण चित्ती और
सूत्रकृमि रोग प्रमुख है| इनकी रोकथाम के लिए बीज
को अच्छे से उपचारित कर के बुवाई करनी चाहिए|
रोग
रोधी किस्म का चुनाव करना चाहिए| रोगी पौधों को उखाड़ कर
मिट्टी में दबा देना चाहिए| इसके साथ साथ 2 ग्राम
गंधक प्रति लिटर पानी और 0.5 प्रतिशत मिथाइल डिमेटान 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी
की दर से छिड़काव करते रहना चाहिए|
अदरक के कीट और रोकथाम –
अदरक (Ginger) की फसल में तना बेधक, राइजोम शल्क और लघु किट जैसे कीट लगते हा इनकी रोकथाम के
लिए मैलाथियान, डाइमेथोए और
क्युनाल्फोस तीनों से एक एक मिलीलीटर दवा और एक लिटर पानी की दर से छिड़काव करना
चाहिए| इसके बाद 25 किलोग्राम
क्लोरोफयरिफास का चूर्ण प्रति हेक्टेयर के हिसाब से राख में मिलाकर बुरकाव करना
चाहिए|
अदरक की खुदाई –
बुवाई के लगभग 7-8 महीनों बाद फसल को खोदा जा सकता है। परंतु सौंठ
के लिए फसल को पूर्ण रूप से पक जाने पर ही खोदते हैं। फसल के पकने में मौसम और
किस्म के अनुसार 7-8 माह लगते हैं। जब पौधों की पत्तियां सूखने लगे, तब प्रकंदों को फावड़े, कस्सी
अथवा खुरपी से खोदकर निकाल लेते हैं।
अदरक की पैदावार -
किस्म, अनुकूल मौषम और उपरोक्त
विधि के अनुसार अदरक की खेती करने के बाद अदरक की उपज 12 से 18 टन (ताजे कन्द)
मिलनी चाहिए|
तो उपरोक्त विवरण से किसान भाई समज गये होंगे की अदरक की उन्नत
खेती कैसे करे, जिससे अच्छी पैदवार और
अच्छा मुनाफा प्राप्त हो सके| इस तरह किसान भाई अच्छी
उपज अदरक की प्राप कर सकते है|
दोस्तों, तो ये थी हमारे किशन
भाई अदरक की खेती कैसे करें और अधिक मुनाफा कैसे कमायें, हमे आशा है आपको अदरक की खेती की जानकारी समझ में आ गई
होगी | फिर भी आपका कोई भी सवाल
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में बता सकते हैं, हमसे पूछ सकते है, दोस्तों इस ब्लॉग पर आए
भी खेती बड़ी से सम्बंधित जानकारी दी जाएगी,
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