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तरबूज की खेती कैसे करें | तरबूज की खेती से कमाइए लाखों रुपए -


तरबूज की आर्गनिक जैविक उन्नत खेती - 

तरबूजा एक कुकरविटेसी परिवार की गर्मियों की सब्जी तथा फल होता है जोकि गर्मी में पैदा किया जाता है । यह फसल उत्तरी भारत के भागों में अधिक पैदा की जाती है । सब्जी के रूप में कच्चे फल जिनमें बीज कम व गूदा ही प्रयोग किया जाता है । तरबूजे की फसल तराई व गंगा यमुना के क्षेत्रों में अधिक पैदा किये जाते हैं ।
तरबूज की खेती  कैसे करें

तरबूजा एक गर्मियों का मुख्य फल है । जोकि मई-जून की तेज धूप व लू के लिये लाभदायक होता है । फल गर्मी में अधिक स्वादिष्ट होते हैं । फलों का सेवन स्वास्थ्य के लिये अच्छा होता है । तरबूजे में पोषक तत्व भी होते हैं जैसे- कैलोरीज, मैग्नीशियम, सल्फर, लोहा, आक्जौलिक अम्ल तथा पोटेशियम की अधिक मात्रा प्राप्त होती है तथा पानी की भी अधिक मात्रा होती है।
तरबूज की खेती के लिए जलवायु :-

तरबूजे के लिए अधिक तापमान वाली जलवायु सबसे अच्छी होती है । गर्म जलवायु अधिक होने से वृद्धि अच्छी होती है । ठण्डी व पाले वाली जलवायु उपयुक्त नहीं होती । अधिक तापमान से फलों की वृद्धि अधिक होती है । बीजों के अंकुरण के लिये 22-25 डी०से०ग्रेड तापमान सर्वोत्तम है तथा सन्तोषजनक अंकुरण होता है । नमी वाली जलवायु में पत्तियों में बीमारी आने लगती है ।

भूमि और उसकी की तेयारी :-

तरबूज और खरबूज की खेती  गर्मी के मोसम में  होने के कारण इसके लिए  हमे ऐसी भूमि की  आवश्यकता होती है जिसमे की नमी बनी रहे   बलई दोमट मिट्टी  और रेतीली  भुरभुरी भूमि जिसका की Ph मान  6 से 7 के बीच होखेत की 2-3 बार अच्छी तरह जुताई कर  क्यारियां बना कर तेयार कर खेत में गोबर की खाद आवश्यकता अनुसार मिला  लेते है   तरबूज और खरबूज के  फलने फूलने लिए  हमे 25 से 30 सेंटीग्रेड तापक्रम होना आवश्यक माना जाता है

तरबूज की उन्नतशील किस्म :-

1. शुगर बेबी -
इसकी बेलें औसत लम्बाई की होती हैं और फलों का औसत वजन दो से पांच किलोग्राम तक होता है। फल का ऊपरी छिलका गहरे हरे रंग और उन पर धूमिल सी धारियां होती हैं। फल का आकार गोल तथा गूदे का रंग गहरा लाल होता है। यह शीघ्र पकने वाली प्रजाति है। औसत पैदावार 200-300 कुंतल प्रति हेक्टेयर है। यह किस्म लगभग 85 दिन पककर तैयार हो जाती है।
2. दुर्गापुर केसर -
यह देर से पकने वाली किस्म है, तना तीन मीटर लम्बा, फलों का औसत वजन छह से आठ किलोग्राम, गूदे का रंग पीला तथा छिलका हरे रंग व धारीदार होता है। इसकी औसत उपज 350-450 कुंतल प्रति हेक्टेयर होती है।
3. अर्का मानिक -
इस किस्म के फल गोल, अण्डाकार व छिलका हरा जिस पर गहरी हरी धारियां होती हैं तथा गुलाबी रंग का होता है। औसत फल वजन छह किलोग्राम होता है। इसकी भण्डारण एवं परिवहन क्षमता अच्छी है। औसत उपज 500 कुंतल प्रति हेक्टेयर 110-115 दिन में प्राप्त की जा सकती है।
4 .दुर्गापुर मीठा -
इस किस्म का फल गोल हल्का हरा होता है। फल का औसत वजन आठ से नौ किलोग्राम तथा इसकी औसत उपज 400-500 कुंतल प्रति हेक्टेयर होती है। यह लगभग 125 दिन में तैयार हो जाती है।
बीज बुवाई का समय और बुआई की विधि :-
उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों में तरबूज की बुआई फरवरी से अप्रैल के बीच एवं नदियों के किनारे इसकी बुआई नवम्बर से जनवरी के बीच में की जाती है। एक हेक्टेयर क्षेत्रफल के लिए 25.4 किलोग्राम पर्याप्त होता है। तरबूज की बुआई के लिए 2.5 से 3.0 मीटर की दूरी पर 40 से 50 सेमी चौड़ी नाली बना लेते है। इन नालियों के दोनों किनारों पर 60 सेमी की दूरी पर बीज बोते हैं। यह दूरी मृदा की उर्वरता एवं प्रजाति के अनुसार घट बढ़ सकती है। नदियों के किनारे 60 गुणा 60 गुणा 60 सेमी क्षेत्रफल वाले गड्ढïे बनाकर उसमें 1:1:1 के अनुपात में मिट्टी, गोबर की खाद तथा बालू का मिश्रण भर कर थालें को भर देते है उसके बाद प्रत्येक थाले में तीन से चार बीज लगते है।

फसल में सिंचाई :-
यदि तरबूज की खेती नदियों के कछारों में की जाती है तो सिंचाई की कम आवश्यकता नहीं पड़ती है। जब मैदानी भागों में इसकी खेती की जाती है, तो सिंचाई 7 से 10 दिन के अन्तराल पर करते हैं। जब तरबूज आकार में पूरी तरह से बढ़ जाते हैं तो सिंचाई बन्द कर देते हैं जिससे फल में मिठास हो जाती है और फल नहीं फटते हैं।
फसल में खरपतवार-नियन्त्रण :-
सिंचाई के बाद खरपतवार पनपने लगता है । इनको फसल से निकालना अति आवश्यक होता है अन्यथा इनका प्रभाव पैदावार पर पड़ता है । साथ-साथ अधिक पौधों को थामरे से निकाल देना चाहिए । 2 या 3 पौधे ही रखना चाहिए । इस प्रकार से पूरी फसल में 2 या 3 निकाई-गुड़ाई करनी चाहिए । यदि रोगी व कीटों पौधों हो तो फसल से निकाल देना चाहिए जिससे अन्य पौधों पर कीट व बीमारी नहीं लग सके ।
खाद और उर्वरक :-
तरबूजे को खाद की आवश्यकता पड़ती है । गोबर की खाद 20-25 ट्रौली को रेतीली भूमि में भली-भांति मिला देना चाहिए । यह खाद क्यारियों में डालकर भूमि तैयारी के समय मिला देना चाहिए । 80 कि.ग्रा. नत्रजन प्रति हैक्टर देना चाहिए तथा फास्फेट व पोटाश की मात्रा 60-60 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर की दर से देनी चाहिए । फास्फेट व पोटाश तथा नत्रजन की आधी मात्रा को भूमि की तैयारी के समय मिलाना चाहिए तथा शेष नत्रजन की मात्रा को बुवाई के 25-30 दिन के बाद देना चाहिए ।
खाद उर्वरकों की मात्रा भूमि की उर्वरा शक्ति के ऊपर निर्भर करती है । उर्वरा शक्ति भूमि में अधिक हो तो उर्वरक व खाद की मात्रा कम की जा सकती है । बगीचों के लिये तरबूजे की फसल के लिए खाद 5-6 टोकरी तथा यूरिया व फास्फेट 200 ग्राम व पोटाश 300 ग्राम मात्रा 8-10 वर्ग मी. क्षेत्र के लिए पर्याप्त होती है । फास्फेट, पोटाश तथा 300 ग्राम यूरिया को बोने से पहले भूमि तैयार करते समय मिला देना चाहिए । शेष यूरिया की मात्रा 20-25 दिनों के बाद तथा फूल बनने से पहले 1-2 चम्मच पौधों में डालते रहना चाहिए ।
रोगों और कीटों से बचाव :-
तरबूजे के लिये भी अन्य कुकरविटस की तरह रोग व कीट लगते हैं लेकिन बीमारी अधिकतर क्यूजैरीयम बिल्ट व एन थ्रेकनोज लगती है तथा कीट रेड बीटिल अधिक क्षति पहुंचाते हैं | बीमारी के लिए रोग-विरोधी जातियों को प्रयोग करना चाहिए तथा कीटों के लिए डी.टी.टी. पाउडर का छिड्काव करना चाहिए ।ध्यान रहे कि रासायनिक दवाओं के प्रयोग के बाद 10-15 दिन तक फलों का प्रयोग न करें तथा बाद में धोकर प्रयोग करें ।कद्दू वर्गीय फसलो में होने वाले  सबसे मुख्य  फंफूदजनित रोग होते है  जिनका की उपचार  फफूंदीनाशी कीटनाशको से करने में विलम्ब नहीं करना चाहिए क्योकि  ये  रोग  फल को बढ़ने से रोकताहै
फलों को तोड़ना :-
तरबूजे के फलों को बुवाई से 3 या 3½  महीने के बाद तोड़ना आरम्भ कर देते हैं । फलों को यदि दूर भेजना हो तो पहले ही तोड़ना चाहिए । प्रत्येक जाति के हिसाब से फलों के आकार व रंग पर निर्भर करता है कि फल अब परिपक्व हो चुका है । आमतौर से फलों को दबाकर भी देख सकते हैं कि अभी पका है या कच्चा । दूर के बाजार में यदि भेजना हो तो पहले ही फलों को तोड़ना चाहिए । फलों को पौधों से अलग सावधानीपूर्वक करना चाहिए क्योंकि फल बहुत बड़े यानी 10-15 किलो के जाति के अनुसार होते हैं । फलों को डंठल से अलग करने के लिये तेज चाकू का प्रयोग करना चाहिए अन्यथा शाखा टूटने का भय रहता है ।


उपज और भण्डारण :-
तरबूजे की पैदावार किस्म के अनुसार अलग-अलग होती है । साधारणत: तरबूजे की औसतन पैदावार 800-1000 क्विंटल प्रति हेक्टर फल प्राप्त हो जाते हैं ।
तरबूजे को तोड़ने के बाद 2-3 सप्ताह आराम से रखा जा सकता है । फलों को ध्यान से ले जाना चाहिए । हाथ से ले जाने में गिरकर टूटने का भी भय रहता है । फलों को 2 डी०सें०ग्रेड से 5 डी०सें०ग्रेड तापमान पर रखा जा सकता है । अधिक लम्बे समय के लिए रेफरीजरेटर में रखा जा सकता है ।

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