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सोयाबीन की उन्नत खेती कैसे करें -Soyabeen ki Hybrid Kheti Kaise Karen -


Soyabeen ki kheti kaise karen

सोयाबीन भारतवर्ष में महत्वपूर्ण फसल है| सोयाबीन केवल प्रोटीन का एक उत्कृष्ट स्रोत है, बल्कि यह कई शारीरिक क्रियाओं को भी प्रभावित करता है आधुनिक शोध में पाया गया है कि सोया प्रोटीन मानव रक्त में कोलेस्ट्रोल की मात्रा कम करने में सहायक होता है शायद यही वजह है कि सोयाबीन का उत्पादन 1985 से लगातार बढ़ता जा रहा है और सोयाबीन के तेल की खपत मूँगफली एवं सरसों के तेल के पश्चात सबसे अधिक होने लगा है
सोयाबीन की फसल के लिए उपयुक्त जलवायु -
सोयाबीन फसल के लिए शुष्क गर्म जलवायु की आवश्यकता होती है, इसके बीजों का जमाव 25 डीग्री सेंटीग्रेट पर 4 दिन में हो जाता है, जबकि इससे कम तापमान होने पर बीजों के जमाव में 8 - 10 दिन लगता है अत: सोयाबीन खेती के लिए 60-65 सेंटी मीटर वर्षा वाले स्थान उपयुत्त माने गये हैं इस फसल की खेती पहाडी क्षेत्रों में भी काफी लोकप्रिय एवं सफल है
सोयाबीन की फसल के लिए भूमि चयन -
सोयाबीन की खेती के लिए अधिक हल्की और पर्याप्त मात्रा में चिकनी मिट्टी (क्ले सोइल) दोनों ही भूमियाँ उपयुक्त नहीं होती हैं। इसे मध्यम प्रकार की मिट्टी में बोया जाना चाहिए। हल्की भूमियों में इसकी बहुत जल्द पकने वाली किस्में जैसे एसएस 2, सम्राट, मोनेटा आदि किस्में ली जा सकती हैं, परंतु ये किस्में उपज कम देती हैं।
सोयाबीन की खेती में खेत की तैयारी -
सोयाबीन की खेती  रबी की फसल की कटाई के बाद गर्मियों में हम सोयबीन की खेती में  खेत को बारिश शुरू होने से पहले अच्छी तरह से  गहरी जुताई कर तेयार कर लेते है जिससे की  भूमि में मोजूद किट रोग से बचाव हो सके और मिट्टी में जलधारण की क्षमता  को बढाया जा सके खेत में बुवाई से पहले गोबर की खादकम्पोस्ट ,सिंगल सुपर फॉस्फेट को  मिट्टी में अच्छी तरह से मिला देते है

सोयाबीन की उपयुक्त किस्मे -
देश भर में 19 से आधिक सोयाबीन की उन्नतशील प्रजातियाँ  है  जिनमे मुख्य रूप से - पी. के. 772, 262, 416, पी. एस. 564, 1024, 1042, जे.एस. 71-5, 93-5, 72-44, 75-46, जे.एस.2, 235, पूसा16, 20 ऍम यू एस46 एवं 37 प्रजाति हैI


सोयाबीन की नई किस्म -
इसके अलावा अभी हाल की के वर्षो में आयी सोयाबीन की उन्नत नई किस्म की बात करे तो इसमें  सबसे ऊपर है जेएस-2034, आरवीएस-2001-4, जेएस-2034 और एनआरसी 86  है  ये सोयाबीन की वे नयी किस्मे है जिसमे की   मोजेक वायरस  से फसल को  हो रहे नुकसान से बचाता है

बीज बुवाई -
सोयाबीन की बोनी कतारों में करना चाहिए। कतारों की दूरी 30 सेमी. ‘’ बोनी किस्मों के लिए ‘’ तथा 45 सेमी. बड़ी किस्मों के लिए उपयुक् है। 20 कतारों के बाद कूड़ जल निथार तथा नमी संरक्षण के लिए खाली छोड़ देना चाहिए। बीज 2.5 से 3 सेमी. गहराई बोयें। बीज एवं खाद को अलग अलग बोना चाहिए जिससे अंकुरण क्षमता प्रभावित हो।

खाद प्रबंधन -
अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद 18 से 20 टन प्रति हेक्टर के साथ जैविक खादों का उपयोग सोयाबीन के उत्पादन को बढ़ा देता है बीज बोते वक्त 20 kg नाईट्रोजन (nitrogen), 60 kg सल्फर(sulphur), 20 kg पोटाश के साथ साथ 20 kg गंधक का प्रति हेक्टर के मान से देना चाहिए।

सोयाबीन की फसल में खरपतवार नियंत्रण -
सोयाबीन की फसल में खरपतवारों को नष्ट करने से उत्पादन में 25-70 प्रतिशत तक की कमी हो सकती है। खरपतवार, फसल के लिये भूमि में निहित पोषक तत्वों में से 30-60 कि.ग्रा. नत्रजन, 8-10 कि.ग्रा. स्फुर एवं 40-60 कि.ग्रा. पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से भूमि से शोषित करते है, जिससे पौधों की विकासगति धीमी पड़ जाती है और उत्पादन स्तर गिर जाता है इसके अतिरिक्त खरपतवार फसल को नुकसान पहॅुंचाने वाले अनेक प्रकार के कीड़े बीमारियों के रोगाणुओं को भी आश्रय देते हैं। खरपतवार सोयाबीन फसल की प्रतिस्पर्धा अवधि 20-35 दिन रहती है अत: इससे पूर्व नींदा नियंत्रण आवश्यक है।

फसल में सिंचाई -

खरीफ मौसम की फसल होने के कारण सामान्यत: सोयाबीन को सिंचाई की आवश्यकता नही होती है। फलियों में दाना भरते समय अर्थात सितंबर माह में यदि खेत में नमी पर्याप् हो तो आवश्यकतानुसार एक या दो हल्की सिंचाई करना सोयाबीन के विपुल उत्पादन लेने हेतु लाभदायक है।

रोग कीट रोकथाम -
सोयाबीन में रोग-  
सोयाबीन में  पीलिया रोग और सूत्रक्रमी रोग प्रमुख है| इनकी रोकथाम के लिए बीज को अच्छे से उपचारित करना चाहिए, रोग रोधी किस्मों का चुनाव करे| कीटनाशक उपचार सूत्रक्रमी रोग के लिए 10 से 15 किलोग्राम फोरेट 10 जी प्रति हेक्टेयर बुआई से पहले खेत में मिला देनी चाहिए और पीलिया रोग के लिए डाइमेथोए 30 ईसी 1 लिटर 700 से 900 लिटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करना चाहिए|


फसल में कीट - 
सोयाबीन में कई प्रकार के कीट लगते है, जैसे की फली छेदक, ग्रीन कीट, गर्डल बीटल, तेला और सेमी सुंडी इत्यादि प्रमुख है| इनकी रोकथाम के लिए मोनोक्रोटोफास 36 डब्लूएस 1 लिटर, क्लोरोफयरिफास 20 ईसी 1.5 लिटर और क्युनाल्फोस 25 ईसी 1.5 लिटर प्रति हेक्टेयर 800 से 1000 लिटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए| जिसे कीटों की रोकथाम हो सके|

फसल कटाई एवं गहाई -
सोयाबीन फसल में जब पत्तियों का रंग पीला पड़ जाये और पत्तियां सूखकर गिरनी प्रारम्भ हो जाये, इस अवस्था पर फसल कटाई कर लेनी चाहिए फसल कटाई के बाद सूखने के लिए फसल को छोड़ दें और 4-5 दिन पश्चात बैलों की सहायता से दाना अलग कर लें
उपरोक्त विधि से सोयाबीन की खेती करने पर 16 क्विंटल सोयाबीन दाना तथा 25 क्विंटल सूखा भूसा हमारे कृषक भाई साधारण ढंग से प्राप्त कर सकते हैं अत: आप भी पतंजलि विधि अपनायें और सोयाबीन का भरपूर उत्पाद पायें


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1 comment:

  1. आपने सोयाबीन की खेती पर बहुत अच्छी जानकारी दी हैं.

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