धान
या चावल (Paddy) भारत की सबसे महत्वपूर्ण खाद्य फसल है| जो कुल फसले क्षेत्र का एक चौथाई क्षेत्र कवर करता है| धान या चावल (Paddy)लगभग आधी भारतीय आबादी का भोजन
है| बल्कि यह दुनिया की मानविय आबादी के एक बड़े हिस्से के
लिए विशेष रूप से एशिया में व्यापक रूप से खाया जाता है| चावल
की खेती भारत भर के लाखों परिवारों की मुख्य गतिविधि और आय का स्रोत है| भारत को इसे विदेशी मुद्रा और सरकारी राजस्व की प्राप्ति होती है| भारत का धान (Paddy) की पैदावार में दूसरा स्थान है|
धान
की खेती के लिए जलवायु -
धान
एक उष्ण तथा उपोष्ण जलवायु की फसल है। गर्म शीतोष्ण क्षेत्रों में धान की उपज अधिक
होती है। धान की फसल को पूरे जीवन काल में उच्च तापमान तथा अधिक आर्द्रता के साथ
अधिक जल की आवश्यकता होती है।धान और पानी का गहरा सम्बन्ध है। जहाँ वर्षा अधिक
होती है वहीं धान का क्षेत्रफल अधिक होता है। जिन क्षेत्रों में वार्षिक वर्षा 140
से.मी से अधिक होती है धान की फसल सफलतापूर्वक उगाई जाती है।
धान
की खेती के लिए भूमि और तयारी -
धान
की खेती के लिए भारी दोमट भूमि सर्वोत्तम पाई गई है। इसकी खेती हल्की अम्लीय मृदा
से लेकर क्षारीय (पीएच 4.5 से 8.0 तक) मृदा में की जा सकती है। धान के खेत की
तैयार शुष्क एंव आर्द्र प्रणाली द्वारा बोने की विधि पर निर्भर करती है। शुष्क
प्रणाली में खेत की तैयारी के लिए फसल के तुरन्त बाद ही खेत को मिट्टि पलटने वाले
हल से जोत देते हैं। इसके बाद पानी बरसने पर जुताई करते हैं। इस प्रकार भूमि की
भौतिक दशा धान के योग्य बन जाती है। गोबर की खाद, कम्पोस्ट या हरी
खाद बोआई से पहले प्रारम्भिक जुताई के समय खेत में अच्छी तरह मिला देना चाहिए।
धान
की उन्नत किस्मे -
संकर
धान की किस्में - के. आर. एच.- 2, पी. एच. वी.- 71, सह्याद्री, प्रो एग्रो- 6201, एराइज-6444, सुरुचि- 5401,
धान की सामान्य किस्में -
अगेती किस्में - 110 से 115 दिन फसल की अवधि वाली, इनमें
मुख्य रूप से पूसा- 2 व 21, पूसा- 33
व 834, पीएनआर- 381 व 162,
नरेन्द्र धान (चावल)- 86 व 97, गोविन्द और सांकेत- 4 आदि प्रमुख है |
मध्यम
अवधि की किस्में- 120
से 125 दिन फसल अवधि वाली किस्में, इनमें प्रमुख रूप से पूसा- 169, 205 व 44, सरजू- 52, पंतधान (चावल)- 10 व
12 और आईआर- 64 आदि प्रमुख है |
लम्बी
अवधि वाली किस्में- 130
दिन से उपर वाली किस्में,इनमें प्रमुख रूप से
पीआर- 106, मालवीय- 36 और नरेन्द्र- 359
आदि प्रमुख है|
बासमती
किस्मे- इनमें
मुख्य रूप से पूसा बासमती- 1, पूसा सुगंध- 2, 3, 4 व 5, कस्तुरी- 385, बासमती- 370
व बासमती तरावडी आदि प्रमुख है |
धान की बीज बुवाई -
धान की सीधी बुवाई के लिए
बीज की मात्रा 40 से 50 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर बोना चाहिए एवम धान की एक
हेक्टेयर रोपाई के लिए बीजकी मात्रा 30 से 35 किलोग्राम बीज पौध तैयार करने हेतु
पर्याप्त होता है नर्सरी डालने से पहले बीज का शोधन करना अति आवश्यक है 25
किलोग्राम बीज के लिए 4 ग्राम स्ट्रेपटोसईक्लीन तथा 75 ग्राम थीरम के द्वारा बीज
को शोधित करके बुवाई करे।
धान की पौधरोपण -
धान
की रोपाई का उपयुक्त समय जून के तीसरे सप्ताह से जुलाई के तीसरे सप्ताह के मध्य
अवश्य करनी चाहिए इसके लिए धान की 21 से 25 दिन की तैयार पौध की रोपाई उपयुक्त
होती है। धान रोपाई के लिए पंक्तियों से पंक्तियों की दूरी 20 सेंटीमीटर और पौधे
से पौधे की दूरी 10 सेंटीमीटर तथा एक स्थान पर 2 से 3 पौधे लगाना चाहिए।
धान में पोषण प्रबंधन -
धान
की अच्छी उपज के लिए खेत में आख़िरी जुताई के समय 100 से 150 कुंतल पर हेक्टेयर
गोबर की सड़ी खाद खेत में मिलाते है तथा उर्वरक में 120 किलोग्राम नत्रजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस एवम 60 किलोग्राम पोटाश तत्व के रूप में प्रयोग
करते है। नत्रजन की आधी मात्रा फास्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा खेत तैयार करते
समय देते है तथा आधी मात्रा नत्रजन की टापड्रेसिंग के रूप में देनी चाहिए।
धान
की खेती में जल प्रबंधन -
धान
(Paddy)
की फसल को अन्य फसलों की अपेक्षा सबसे ज्यादा पानी की आवश्यकता होती
है| धान की फसल को कुछ विशेष अवस्थाओं में पानी की जरूरत
रहती है रोपाई के बाद एक सप्ताह तक, पौधे के फुटाव के समय,
बाली निकलते समय और दाना भरते समय खेत में पानी रहना आवश्यक होना
चाहिए|
खरपतवार
प्रबंधन -
धान
में खरपतवार हटाने के लिए खुरपी या पैडीवीडर का प्रयोग करते है या फिर रसायन विधि
से नियन्त्रण के लिए रोपाई के 3 से 4 दिन के अंदर 700 से 800 लिटर पानी में 3.5
लिटर पेंडीमेथलिन 30 ई. सी. का प्रयोग प्रति हेक्टेयर करें |
धान
की खेती में किट व रोग प्रबंधन :-
किट प्रबंधन - धान को लगने वाले प्रमुख किट दिमक, पत्ती लपेटक किट, गन्धी बग और तना बेधक इत्यादि इसके
लिए 1.5 लिटर प्रति हेक्टेयर नीम से बनी कीटनाशक का प्रयोग करे और बाद में
क्यूनालफास 25 ई.सी. 1.25 लिटर या क्लोरोपाइरीफास 20 ई. सी. 1.5 लिटर प्रति
हेक्टेयर में छिडकाव करना चाहिए|
रोग
प्रबंधन - धान
(Paddy)
की फसल को लगने वाले प्रमुख रोग सफेद दाग, विषाणु
झुलसा रोग, शिथ झुलसा, भूरा धब्बा,
जीवाणु धारी, झोका और खैरा इत्यादि है|
इसके लिए बीज को बोने से पहले अच्छे से उपचारित करें| यदि फिर भी रोग फसल को अपनी चपेट में लेता है तो रोग से सम्बंधित दवा का
उपयोग करे इसके लिए आप अपने कृषि अधिकारी से सम्पर्क कर सकते है|
फसल कटाई -
जब खेत में 50 प्रतिशत
बालियाँ पकाने पर फसल से पानी निकाल देना चाहिए 80 से 85 प्रतिशत जब बालियों के
दाने सुनहरे रंग के हो जायं अथवा बाली निकलने के 30 से 35 दिन बाद कटाई करना चाहिए
इससे दानो को झड़ने से बचाया जा सकता है। अवांछित पौधों को कटाई के पहले ही खेत से
निकाल देना चाहिए कटाई के बाद तुरंत ही मड़ाई करके दाना निकाल लेना चाहिए।
धान की पैदावार -
दो
प्रकार की प्रजातियाँ मिलती है सिंचित और असिंचित दोनों प्रकार की प्रजातियों में
पैदावार भी अलग-अलग पाई जाती है। सिंचित क्षेत्रों में सभी तकनीकी अपनाने पर 50 से
55 कुंतल प्रति हेक्टेयर पैदावार प्राप्त होती है। असिंचित क्षेत्रों में सभी
तकनीकी अपनाने पर 45 से 50 कुंतल प्रति हेक्टेयर पैदावार प्राप्त होती है।
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