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खीरे की खेती कैसे करें | खीरे की खेती से कमाइए लाखों रुपए -


खीरे की खेती  कैसे करें | खीरे की खेती से कमाइए लाखों रुपए -
Kheere ki kheti kaise karen


खीरा एक सलाद के लिए मुख्य फसल समझी जाती है । इसकी खेती सम्पूर्ण भारतवर्ष के सभी भागों में की जाती है । यह फसल अधिकतर सलाद व सब्जी के लिये प्रयोग की जाती है । खीरे की फसल वसन्त तथा ग्रीष्म ऋतु में बोई जाती है । इस फसल के फलों को अधिकतर हल्के भोजन के रूप में इस्तेमाल करते हैं जिसमें कि पानी की मात्रा अधिक होती है । खीरा स्वास्थ्य के लिये लाभप्रद रहता है । खीरे के सेवन से पाचन-क्रिया ठीक रहती है । इसका प्रयोग होटल, ढाबे तथा शहरों में अधिकतर खाना खाने के साथ सलाद के रूप में करते हैं ।
खीरे के सेवन करने से मनुष्य के शरीर को पानी की पूर्ति होती है । इसके प्रयोग से पोषक तत्त्वों की भी पूर्ति होती है । जैसे- पोटेशियम, सोडियम, कैल्शियम, खनिज पदार्थ, कैलोरीज, फॉस्फोरस, विटामिन सीतथा अन्य कार्बोहाइड्रेट्‌स ।
आवश्यक भूमि व जलवायु :-
खीरा की फसल के लिए अच्छे जल निकास वाली दोमट और बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है| लेकिन खीरा की खेती सभी प्रकार की कार्बनिक और उपजाऊ मिट्टी में इसकी खेती सफलतापुर्वक की जाती है| खीरा के लिए मिट्टी का पीएच मान 5.5 से 6.8 के मध्य होना अच्छा रहता है| खीरे की खेती शीतोषण और समशीतोषण दोनों तरहा के भूमि में किया जा सकता है | खीरे के फूलो को खिलने के लिए इन्हें 13 से 18 डिग्री तक के तापमान  के ज़रूरत होती है , और पौधों को बड़ा होने के लिए 18 - 24 डिग्री  तापमान की ज़रूरत होती है |
खेत की तैयारी :-
खेरी की खेती करने के लिए खेतों की तैयारी अच्छे करे, इसके लिए सबसे पहले भूमि जुताई करते वक्त मिटटी को पलटने वाले हल से अच्छे से जुताई कर ले | 2 से 3 बार समान्य हल या cultivator जुताई कर ले और आखरी जुताई करने के बाद खेत में 200 - 300 कुन्तल जैविक खाद यानि के सड़े हुए गोबर को डाल कर खेतो में नालियाँ बनाये |
खीरे की किस्में :-
खीरे की मुख्य जातियों को बोने की सिफारिश की जाती है जो निन्नलिखित है
पहली पोइन्सेट (Poinsette) -  यह किस्म अधिक उपज देने वाली तथा दोनों मौसम में बोई जाती है । फलों की तुड़ाई बुवाई से 60 दिन बाद हो जाती है ।खीरे के फलों का रंग गहरा हरा, छोटे आकार के तथा सिरों से गोल होते हैं । इस किस्म पर बीमारियों का प्रकोप नहीं होता है ।
दूसरी  जापानी लौंग ग्रीन (Japanese Long Green) - यह किस्म सबसे शीघ्र तैयार होने वाली है जो 45 दिन में खाने योग्य हो जाती है । फलों का रंग हल्का सफेद, हरा तथा आकार में 25-35 सेमी. लम्बे होते हैं । गूदा हल्के हरे रंग का, खाने में रवेदार तथा स्वादिष्ट होते हैं । पैदावार भी अधिक होती है ।

तीसरी स्ट्रीट एइट (Straight Eight) -  यह किस्म भी शीघ्र पकने या तैयार होने वाली है | गूदा हल्का सफेद तथा फल मध्यम आकार के लम्बे होते हैं । पतलें, सीधे, हरे रंग के फल होते हैं ।

बीज बुवाई :-
खीरा (Cucumber) की खेती के लिए 2 से 2.5 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर के लिए उपयुक्त रहता है| बुवाई से पहले 2 ग्राम कैप्टान प्रति लिटर पानी के दर से 3 से 4 घंटे बीज को भिगोकर रखे उसके बाद उनको छाव में सुखाकर बुवाई करनी चाहिए |

खाद व उर्वरक प्रबंधन :-
खीरे की खेती में यदि आप Organic manure का इस्तेमाल करते है तो आप खीरे की अच्छी production की उमीद कर सकते है | इसकेलिए खेत की आखरी जुताई में 200 - 300 कुन्तल  सड़े हुए गोबर को अच्छे से मिलाये साथ ही 40 से 50 किलोग्राम नित्रोजन (Nitrogen) , 70 किलोग्राम पोटाश (Potash) , 60 किलोग्राम फास्फोरस (Phosphorus) जैसे Elements को खेत तैयार करते वक्त डाले |
फसल होने के ठीक 20 - 25 दिन बाद माइक्रो झाइम 500 मिली लीटर  और 2 किलोग्राम सुपर  गोल्ड  मैग्नीशियम 400 से 500 लीटर पानी में मिला कर क्यारियों में छिडकाव कर 20 से 25 दिन के बाद पुनः इस प्रक्रिया को अपनाये |

फसल में सिंचाई :-
पहले इसकी खाल मैं  पानी लगा  कर डौल के ऊपर  बीज लगाया  जाता है। इसके बाद दो तीन दिन बाद  पानी  दिया  जाता है।  गर्मिओं मैं पांच  छे दिन बाद पानी लगते  रहना  चाहिए।  आम तौर  पे  इसको दस  से  पन्द्र पानी लगते  हैं। 
निराई - गुड़ाई :-
सिंचाई के बाद लगभग 5-6 दिन के अन्तर से खेत में से घास व अन्य खरपतवार निकालना चाहिए तथा साथ-साथ थीनिंग भी कर देना चाहिए । इस समय किसी थामरे (Furrow) में बीजों का अंकुरण नहीं हुआ है तो अन्य थामरे से अधिक पौधों के होने पर खाली थामरे में पौधा लगाना चाहिए तथा ध्यान रहे कि उसी समय पानी लगाना चाहिए जिससे मुलायम जड़ें मिट्‌टी को पकड़ लें तथा थामरों की गुड़ाई समय पर करते रहना चाहिए । गुड़ाई के समय खुरपी आदि को ध्यान से चलाना चाहिए जिससे पौधों की जडें न कट पायें ।
खीरा में रोग और कीट रोकथाम :-
रोग – खीरा में फफूंदी रोग लगते है, जैसे- डाउनी फफूंदी, पउडरी फफूंदी, धब्बा रोग और विषाणु रोग लगते है| इनकी रोकथाम के लिए रोगरोधी किस्म का चुनाव और प्रमाणित बीज का उपचार कर के बुवाई करनी चाहिए| इसके साथ साथ कोसावेट गंधक 2 ग्राम प्रति लिटर या कैरोथिन 1 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी में मिलाकर 3 से 4 छिड़काव 10 से 15 दिन के अन्तराल पर करना चाहिए| विषाणु रोग की रोकथाम के लिए सैप्त्रोसाइक्लिन 400 पीपीएम का छिड़काव 10 दिन के अन्तराल पर दो बार करना चाहिए
कीट खीरा (Cucumber) की फसल में अनेक कीट लगते है, जैसे लाल किट, फल का कीड़ा, बग कीट, माहू, कुकरबिट और मैलान फ्लाई आदि| इनकी रोकथाम के लिए मोनोक्रोटोफास, एंडोसल्फान और मैलाथियम 1 से 1.5 लिटर प्रत्येक का अलग अलग 5 से 7 दिन के अन्तराल पर 700 से 800 लिटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करना चाहिए

फलों की तुड़ाई :-
खीरे की तुड़ाई अधिकतर फलों के आकार तथा बाजार की मांग के ऊपर निर्भर करती है । फलों को अगेता तोड़कर बाजार में अधिक मूल्य पर बेचा जाता है । फलों को अधिक पकने से पहले ही तोड़ना चाहिए । कच्चे फलों को बाजार भेजने से अधिक मूल्य मिलता है । इस प्रकार से 3-4 दिन के बाद तुड़ाई करते रहना चाहिए । अधिक पके फलों को बेचने से अधिक बाजार मूल्य नहीं मिलता । यदि अधिक फलों के पक जाने पर उनको बीज के लिये खेत में पकाना चाहिए जिससे बीज की प्राप्ति हो सके ।

पैदावार :-
खीरे की जायद की फसल की उपज सही देखभाल के पश्चात् 100-120 क्विंटल प्रति हैक्टर प्राप्त होती है । जबकि खरीफ की फसल की पैदावार अधिक होती है । इस प्रकार से खरीफ की फसल की पैदावार 14-16 क्विंटल प्रति हैक्टर की दर से प्राप्त होती है । बगीचों से भी समय पर फल मिलते रहते हैं । इस प्रकार से 15-20 कि.ग्रा. प्रति वर्ग मी. क्षेत्र से आसानी से प्राप्त हो जाते हैं ।

भंडारण :-
खीरे को लगभग सभी जगह प्रयोग किया जाता है । फलों का प्रयोग अधिकतर बड़े-बड़े होटलों में सलाद के रूप में अधिक प्रयोग करते हैं । इसलिए इन फलों को लम्बे समय तक रोकना (Storage) पड़ता है । अत: यह गर्मी की फसल होने के कारण फलों को 10 डी०सेग्रेड तापमान पर स्टोर किया जा सकता है । स्टोर के लिये अच्छे, बड़े व कच्चे फलों को ही स्टोर करना चाहिए ।


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