भिन्डी जिसे की हम ओंकरा और
लेडीज फिंगर (ladyfinger) के नाम से भी जानते है एक ऐसी खेती जो की गर्मियों में उगाई जाने वाली
एक प्रमुख फसल है | सब्जियों में भिन्डी गुणों से भरपूर एक ऐसी फसल है जिसकी खेती
किसानो के लिए भी उतनी फायदेमंद खेती है जितना की
इसे खाने का फायदा है|
भिन्डी की खेती के लिए जलवायु
–
अगर आप भिन्डी (BHINDI ) की खेती के बारे में सोच रहे हैं तो आपको
भिंडी की जलवायु की जानकारी होनी अति आवश्यक हे क्योकि इसकी उन्नत खेती के लिए इसकी
जनकारी होना जरुरी हे । क्योंकि सही मौसम की जानकारी ना होने के कारण आपको नुकसान
उठाना पड़ सकता है। हम अगर मौसम की बात करें तो भिन्डी की खेती करने के लिए के लिए
गर्मी का मौसम उत्तम रहता है। यानि की आप गर्मी के मौसम में भिन्डी की खेती करके
उत्पादन अच्छे से प्राप्त कर सकते है। भिंडी की खेती के लिए उत्तम तापमान 20
डिग्री से 40 डिग्री तक होना चाहिए अगर तापमान
इससे ज्यादा होगा तो फूल गिर जाते हैं।
भिन्डी की उन्नतशील किस्में –
किसी
भी फसल की अच्छी आवक के बहुत जरुरी है की हम ऐसी किस्मो का चयन करे की जो की उन्नत
हो |ये निम्न प्रमुख भिन्डी की उन्नत किस्मे है - आजाद भिन्डी 1, जिसे आजाद गंगा
कहते है आजाद भिन्डी 2, आजाद भिन्डी 3, यह आजाद कृष्णा है, लाल रंग की होती है और आजाद
भिन्डी 4 इसके अलावा परभनीक्रांति, वर्षा उपहार, पूसा ऐ 4, अर्का अनामिका एवम अर्का अभय यह उन्नतशील
प्रजातियाँ है जिनमे बीमारी नहीं लगती है |
भिन्डी
की खेती के लियें भूमि और उसकी तयारी –
भिन्डी
की खेती के लिए अगर भूमि की बात करें तो इसे किसी भी तरह की भूमि पर उगाया जा सकता
है पर हल्की दोमट मिट्टी जिसमे जल निकासी अच्छी हो बढ़िया मानी जाती है। भूमि की तैयारी की बात करें तो । भिन्डी की
खेती के लिए खेत को जोतकर उसमे से खरपतवार , घास फूस , कंकर पत्थर जो भी फसल को नुकसान पहुचाये उसे निकल लेना चाहिए । इससे आपके
फसल की उत्पादन क्षमता बढ़ जायेगी । एक बात का ध्यान दें अगर आपके खेत में
प्लास्टिक है तो उसे जरूर निकाल लीजिये प्लास्टिक का होना न तो किसी फसल के लिए
अच्छा होता है ना ही खेत के लिए। खेत को 2 से 3 बार पलेवा जरूर करना चाहिए जिससे
खेत सही हो जाता हे | और साथ में समतल भी बना लेना चाहिए अगर
खेत समतल नहीं बना सकते हो तो खेत में क्यारियां जरूर बना लेनी चाहिए जिससे की
सिंचाई करने में आपको कोई दिक्कत ना हो और सिचाई आसानी से की सके।
बीज
की मात्रा व बुआई समय –
सिंचित
अवस्था में 2.5 से 3 किग्रा तथा असिंचित दशा में 5 -7 किग्रा प्रति हेक्टेअर की
आवश्यकता होती है । संकर किस्मों के लिए 5 कि.ग्रा. प्रति हेक्टर की बीजदर
पर्याप्त होती है। इसकी वुवाई जुलाई का दूसरा पखवारा सर्वोतम होता है I और इसकी वुवाई
लाइनो में की जाती है, लाइन से लाइन की दूरी 45 सेंटी मीटर
पौध से पौध की दूरी 30 सेंटी मीटर रखनी चाहिए, जिससे की
हमारी उत्तम पैदावार मिल सके I
भिन्डी
की खेती में सिंचाई –
सिंचाई
मार्च में 10 -12 दिन, अप्रैल में 7 - 8 दिन और मई-जून में 4 - 5 दिन के अन्तर पर करें । बरसात
में यदि बराबर वर्षा होती है तो सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है ।
खाद और उर्वरक –
जब
हम खेत तैयार करते है उस समय 200 - 250 कुन्तल प्रति हेक्टर के हिसाब से कम्पोस्ट
या गोबर की सड़ी खाद आखिरी जुताई में मिला देना चाहिए, खेत वुवाई करते
समय नाइट्रोजन इससे पूरा नहीं होता है तो नाइट्रोजन तत्व के रूप में 80 किलो ग्राम
नाइट्रोजन, 60 किलो ग्राम फास्फोरस तथा 40 किलो ग्राम पोटाश
की आवश्कता पड़ती है, और आखिरी जुताई में वुवाई से पहले आधी
नाइट्रोजन की मात्रा खेत में जुताई करते समय दे देना चाहिए, फास्फोरस
तथा पोटाश की पूरी मात्रा आखिरी जुताई में प्रयोग करते हैI
निराई व गुड़ाई –
नियमित
निंदाई - गुड़ाई कर खेत को खरपतवार मुक्त रखना चाहिए। बोने के 15 - 20 दिन बाद
प्रथम निंदाई - गुड़ाई करना जरुरी रहता है। खरपतवार नियंत्रण हेतु रासायनिक
कीटनाशकों का भी प्रयोग किया जा सकता है। खरपतवारनाशी फ्ल्यूक्लरेलिन के 1.0
कि.ग्रा. सक्रिय तत्व मात्रा को प्रति हेक्टेयर की दर से पर्याप्त नम खेत में बीज
बोने के पूर्व मिलाने से प्रभावी खरपतवार नियंत्रण किया जा सकता है।
कीट व रोग नियंत्रण –
कीट नियंत्रण
– भिन्डी की फसल में तना वेधक और फल वेधक दोनों तरह के कीट लगते है, इसके बचाव के लिए हम कार्बोसल्फान 25 ई. सी. 1.5 लीटर 800 से 1000 लीटर
पानी में घोलकर प्रति हेक्टर के हिसाब हर 10 से 15 दिन के अन्तराल छिडकाव करते रहना चाहिए, लेकिन
यह ध्यान रखे जब छिडकाव इसका करे, इसके पूर्व भिन्डी की
तोड़ाई कर लेना चाहिए, जिससे की इसका बुरा प्रभाव खाने वालो
पर न पड़ सके I
रोग नियंत्रण - इसमें
सबसे अधिक येलोवेन मोजेक जिसे पीला रोग कहते है, यह रोग वाइरस के
द्वारा या विषाणु के द्वारा फैलता है, जिससे की फल पत्तियां
और पेड़ पीला पड़ जाता है, इसके नियंत्रण हेतु रोग रहित
प्रजातियाँ का प्रयोग करना चाहिए या मेलाथियान 50 ई सी यह १ लीटर को 800 से 1000
लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टर के हिसाब से हर 10 से 15 दिन के अंतराल पर
छिडकाव करते रहना चाहिए, जिससे यह पीला रोग उत्पन्न ही नहीं
होता है I
भिन्डी के फलों की तोड़ाई –
अंत
में भिन्डी के पौधे से फलों को तोड़ने का काम किया जाता है। बिज बोने के लगभग 2
महीनो के बाद ये काम किया जाता है। जब फल तोड़ने योग्य हो जाएँ तो बिना पौधे को
हानि पहुचाये फलों को तोड़ लेना चाहिए और फलों की तोड़ने का कार्य 4 से 6 दिन के
अंतर पर करना चाहिए।
पैदावार –
स्वस्थ
फसल पर आपको 125 से 150 कुन्तल खाने योग फालियाँ मिलती है I
दोस्तों, तो ये थी हमारे किशन भाई भिन्डी की खेती कैसे करें और अधिक
मुनाफा कैसे कमायें, हमे आशा है आपको भिन्डी की खेती की जानकारी समझ में आ गई होगी
| फिर भी आपका कोई भी सवाल है या सुझाव है, तो हमें कमेंट बॉक्स में बता
सकते हैं, हमसे पूछ सकते है,
दोस्तों इस
ब्लॉग पर आए भी खेती बड़ी से सम्बंधित जानकारी दी जाएगी, जानकारी अच्छी लगे तो इस
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