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मक्का की खेती कैसे करे Makka (Baby Corn) Ki Kheti Kaise Karen -


मक्का खरीफ ऋतु की फसल है, परन्तु जहां सिचाई के साधन हैं वहां रबी और खरीफ की अगेती फसल के रूप मे ली जा सकती है। मक्का कार्बोहाइड्रेट का बहुत अच्छा स्रोत है। यह एक बहपयोगी फसल है व मनुष्य के साथ- साथ पशुओं के आहार का प्रमुख अवयव भी है तथा औद्योगिक दृष्टिकोण से इसका महत्वपूर्ण स्थान भी है। चपाती के रूप मे, भुट्टे सेंककर, मधु मक्का को उबालकर कॉर्नफलेक्स पॉपकार्न लइया के रूप मे आदि के साथ-साथ अब मक्का का उपयोग कार्ड आइल, बायोफयूल के लिए भी होने लगा है। लगभग 65 प्रतिशत मक्का का उपयोग मुर्गी एवं पशु आहार के रूप मे किया जाता है। साथ ही साथ इससे पौष्टिक रूचिकर चारा प्राप्त होता है। भुट्टे काटने के बाद बची हुई कडवी पशुओं को चारे के रूप मे खिलाते हैं। औद्योगिक दृष्टि से मक्का मे प्रोटिनेक्स, चॉक्लेट पेन्ट्स स्याही लोशन स्टार्च कोका-कोला के लिए कॉर्न सिरप आदि बनने लगा है। बेबीकार्न मक्का से प्राप्त होने वाले बिना परागित भुट्टों को ही कहा जाता है। बेबीकार्न का पौष्टिक मूल्य अन्य सब्जियों से अधिक है।



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जलवायु

मक्का एक hot तथा humid climate का फसल है, इसलिए इसकी खेती के लिए hot तथा humid climate वाले जगहा को चुने | इसकी खेती करने के लिए ऐसे ज़मीन को चुने जहा पानी जमा नहीं होता हो और आसानी से खेत से बाहर निकल जाता हो|

भूमि व उसकी तयारी
मक्का (Maize) की खेती के लिए लगभग सभी प्रकार की कृषि योग्य भूमि में की जा सकती है| लेकिन अच्छी पैदावार के लिए जल निकासी, वायु संचार और दोमट या बलुई दोमट मिट्टी होनी चाहिए| मक्के की खेती करने की लिए इसके खेत को गर्मी के मौसम के end में जब पहली बारिश होती है, जो की june के महीनो में होती है, उस बारिश में अपने खेत को अच्छे से जोत कर अच्छे से पाटा चला कर समतल कर ले | Natural खाद का इस्तेमाल करने से मक्का की फसल अच्छी होती है, इसलिए इसके खाद के लिए पूरी तरह से सड़ी हुई गोबर को जुलाई month के end में अपने खेतो में डाले | जैसे की रबी का मौसम शरू होता है वैसे ही अपने खेत को अच्छे से दो बार जोत कर पाटा चला कर ज़मीन को हलका plane कर ले |

मक्का की किस्में
1. सामान्य या परंपरागत किस्में - ये किस्में इस प्रकार है, जैसे की नवीन, श्वेता, कंचन, शक्ति- 1, आजाद उत्तम, नव ज्योति, प्रभात, गौरव, प्रगति, नर्मदा, मोती, जवाहर मक्का- 216, 8 व 12, पूसा कम्पोजिट- 1, 2 व 3, अरुण, किरन और नवजोत इत्यादि प्रमुख है|
2. संकर किस्में - मक्का (Maize) की संकर किस्में इस प्रकार है, जैसे गंगा- 1, 4 व 11, केएच- 510, डीएचएम- 15, 103 व 109, डेक्कन- 107, पूसा अर्ली 1 व 2, हिम- 129, विवेक- 4, सरताज, प्रकाश, शक्तिमान-2 और जेएच- 3559 ये प्रमुख संकर किस्में है
3. पशु चारा किस्मे - पशुओं के चारे वाली प्रमुख किस्में इस प्रकार है, जैसे जे- 1006, प्रताप चरी- 6 और अफ्रीकन टाल इत्यादि है|

बीज उपचार व बीज बुआई
मक्के की अच्छी production की लिए बीज को बोने से पहले आपने बीजो को अच्छे से जाच कर ले | मक्की के बीजो को बोने से पहले उन्हें फंफूदनाशक दवा का इस्तेमाल कर ले, दवा की जानकरी के लिए आप आपने नजदीकी agricultural department से मिल कर उन से सलह ले सकते है फसल की बुआई खरीफ के लिए जून के अंत तक बुआई कर लेनी चाहिए और रवि के लिए फरवरी के अंत तक बुआई कर लेनी चाहिए|सामान्य मक्का के लिए 18 से 20 किलोग्राम व संकर किस्म के लिए 12 से 15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज का उपयोग करना चाहिए| मक्का की बुआई हल से 3 से 5 सेंटीमीटर गहराई पर करे, लाइन से लाइन की दुरी 55 से 65 सेंटीमीटर रखे और पौधे से पौधे की दुरी 25 से 30 सेंटीमीटर रखनी चाहिए |

खाद व उर्वरक
किसानों को 90 क्विंटल अच्छी पकी हुई गोबर की खाद को खरीफ फसलों की बोआई से पहले प्रति हेक्टेयर की दर से खेत की तैयारी के समय मिट्टी में मिला देना चाहिए. इस से मिट्टी की उर्वरकता लंबे समय तक बनी रहती है. यदि मिट्टी परीक्षण नहीं हुआ हो तो रबी मक्के में 120:60:40 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटाश को डालना चाहिए. 3 साल में 1 बार 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से जिंक सल्फेट का इस्तेमाल करना चाहिए. मिट्टी में यदि बोरान की कमी हो, तो 18 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बोरेक्स पाउडर डालना चाहिए|

उर्वरक डालने का तरीका
नाइट्रोजन - नाइट्रोजन की एकतिहाई मात्रा जमीन में बोआई के समय डालनी चाहिए व बची हुई मात्रा को खड़ी फसल में 2 बराबर भागों में बांट कर देना चाहिए. पहला भाग बोआई के 25 से 30 दिनों बाद घुटने तक पौधों की ऊंचाई होने पर और दूसरा भाग नर मंजरी निकलते वक्त 50 से 60 दिनों पर पौधों के पास इस्तेमाल करना चाहिए. इस्तेमाल की गई नाइट्रोजन से ज्यादा लाभ पाने के लिए इस्तेमाल के बाद उसे मिट्टी से ढक देना चाहिए.

फास्फोरस व पोटाश - फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा बोआई के समय बीज से 5 सेंटीमीटर नीचे बैलनाड़ी या किसी और तरीके से डालनी चाहिए. चूंकि ये उर्वरक मिट्टी में कम घुलती हैं, लिहाजा इन का इस्तेमाल ऐसी जगह करना चाहिए, जहां पर पौधे की जड़ें हों. ऐसा करने से ये मिट्टी में कम स्थिर हो पाते हैं. ध्यान यह रहे कि जस्ता व बोरोन से संबंधित उर्वरकों को भी इसी समय इस्तेमाल करना चाहिए.

मक्का के लिए सिंचाई
सर्वप्रथम सिंचाई बुवाई से पहले करे क्योंकि बीज अंकुरण हेतु पर्याप्त नमी का होना नितान्त आवश्यक है । बुवाई के 15-20 दिन बाद मौसमानुसार जब पौधे 10-12 सेमी. के हो जायें तो प्रथम सिंचाई करनी चाहिए तत्पश्चात् 12-15 दिन के अन्तराल से सर्दियों की फसल में तथा 8-10 दिन के अन्तराल से ग्रीष्मकालीन फसल में पानी देते रहना चाहिए । क्योंकि बेबीकोर्न या गिल्ली बनते समय पर्याप्त नमी होनी आवश्यक है ।

खरपतवार प्रबंधन
खरपतवार किसी भी फसल को प्रभावित कर के उसकी पैदावार को 40 से 50 प्रतिशत कम कर देता है| फसल की बुआई के 3 से 4 सप्ताह के अंदर खरपतवार को निकाल दे या हल या अन्य यंत्र से निराई गुड़ाई करनी चाहिए, या फिर बुआई के तुरंत बाद नमी युक्त भूमि में एट्राजीन खरपतवारनाशी 1 से 1.5 लिटर 800 से 900 लिटर पानी में घोल बनाकर या पेंडामेथलिन 3.5 किलोग्राम का 800 से 900 लिटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करना चाहिए|

मक्का के लिए किट प्रबंधन
गरमी के मौसम में 2-3 बार खेत की गहरी जुताई करनी चाहिए. बोआई के समय कार्बोफ्यूरान 3 जी को 33 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से मिलाएं. 8 ट्राइकोकार्ड (ट्राइकोकार्ड कीलोनिस/जेपोनिकम) अंड परजीवी के 75000-1,00,000 प्यूपा प्रति हेक्टेयर की दर से 10 दिनों के अंतराल में छोड़ने चाहिए. अधिक प्रकोप होने पर इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल की 1 मिलीलीटर मात्रा व क्विनालफास 25 ईसी की 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से ले कर 800-1000 लीटर पानी में मिला कर प्रति हेक्टेयर की दर से 20 दिनों के अंतर पर 2-4 बार छिड़काव करें.

मक्का के लिए रोग प्रबंधन
मक्का की फसल के प्रमुख रोग इस प्रकार है जैसे तना सडन, पत्तियों का झुलसा और तुलसासित रोग इत्यादि लगते है| इनकी रोकथाम के लिए 15 ग्राम स्टेप्टोसाइक्लीन और 500 ग्राम कॉपर आक्सीक्लोराइड का प्रति हेक्टेयर 700 से 800 लिटर पानी में घोल बनाकर छिडकाव करना चाहिए |

मक्का की कटाई -
मक्का की कटाई फसल के अच्छी तरह पकने के बाद ही करनी चाहिए नही तो पैदावार प्रभावित हो सकती है| कटाई के बाद भुट्टो को तोड़ कर धुप में सुखाना चाहिए, उसके बाद मशीन या हाथों से ही दानों को निकाले|

मक्का की पैदावार –
मक्के की फसल की औसतन उपज 80 से 100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर या इस से भी ज्यादा हो सकती है. खरीफ मक्के के मुकाबले रबी मक्के से अधिक उपज प्राप्त होती है, क्योंकि खरीफ के मुकाबले रबी में खेत की तैयारी अच्छी हो जाती है और कीटबीमारियों का प्रकोप भी कम होता है|

भण्डारण –
कटाई व गहाई के पश्चात प्राप्त दानों को धूप में अच्छी तरह सुखाकर भण्डारित करना चाहिए। यदि दानों का उपयोग बीज के लिये करना हो तो इन्हें इतना सुखा लें कि आर्द्रता करीब 12 प्रतिशत रहे। खाने के लिये दानों को बॉस से बने बण्डों में या टीन से बने ड्रमों में रखना चाहिए तथा 3 ग्राम वाली एक क्विकफास की गोली प्रति क्विंटल दानों के हिसाब से ड्रम या बण्डों में रखें। रखते समय क्विकफास की गोली को किसी पतले कपडे में बॉधकर दानों के अन्दर डालें या एक ई.डी.बी. इंजेक्शन प्रति क्विंटल दानों के हिसाब से डालें। इंजेक्शन को चिमटी की सहायता से ड्रम में या बण्डों में आधी गहराई तक ले जाकर छोड़ दें और ढक्कन बन्द कर दें।
दोस्तों, तो ये थी हमारे किशन भाई मक्का की खेती कैसे करें और अधिक मुनाफा कैसे कमायें, हमे आशा है आपको मक्का की खेती की जानकारी समझ में आ गई होगी | फिर भी आपका कोई भी सवाल है या सुझाव है,  तो हमें कमेंट बॉक्स में बता सकते हैं, हमसे पूछ सकते है,  दोस्तों इस ब्लॉग पर आए भी खेती बड़ी से सम्बंधित जानकारी दी जाएगी, जानकारी अच्छी लगे तो इस अपने दोस्तों के शत सोशल साईट पर शेयर जरुर करें, और हमारी इस वेबसाइट को सब्सक्राइब करें , धन्यवाद |

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