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मिर्च की खेती कैसे करें | Mirch ki Kheti ko Kaise Kare | Chilli Farming in Hindi -


मिर्च (Chilli) भारत की प्रमुख मसाला फसल है| इसके स्वाद में तीखापन होता है| मिर्च (Chilli) का उपयोग एक मसाले तौर पर किया जाता है| मिर्च प्राप्त करने के लिए इसकी खेती की जाती है| मिर्च का जन्म स्थान दक्षिणी अमेरिका है| यह भारत की भी प्रमुख फसल है| भारत में लगभग 7,92000 हेक्टेयर में इसकी खेती की जाती है, जिससे 12, 23000 टन मिर्च (Chilli) का उत्पादन होता है|

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मिर्च की खेती भारत में खरीफ और जायद दोनों मौसम में की जा सकती है| किसान भाई मिर्च की आधुनिक तकनीकी से खेती कर के अच्छा लाभ कमा सकते है| मिर्च (Chilli) की उन्नत खेती कैसे करे, यह समजाने के लिए यहाँ विस्तार से इस विधि का वर्णन किया गया है| जिसको पढकर कोई भी मिर्च की अच्छी पैदवार प्राप्त कर सकता है|

जलवायु –
मिर्च को किसी भी मौसम में उगा सकते है। लेकिन ज्यादातर मिर्च की खेती सर्दी के मौसम में करने से अधिक लाभ होता है। इसे उगाने के लिए कम तापमान की आवश्कता होती है। अतः मिर्च को शाम में लगभग 4 बजे के बाद रोपना चाहिए जब धुप कम हो जाये। धुप में मिर्च के पौधे को रोपने से पौधा मुड़झा जाता है।

भूमि व भूमि की तयारी –
मिर्च की खेती सभी प्रकार की भूमियों में की जा सकती है. परंतु अच्छे जल निकास वाली एवं कार्बनिक बलुई दोमट, लाल दोमट मिट्टी जिसका पीएच मान 6.0 से 6.7 हो मिर्च की खेती के लिये सबसे उपयुक्त है. वो मिट्टी जिसमें जल निकास व्यवस्था नहीं होती, मिर्च के लिये उपयुक्त नहीं है| खेती शुरू करने से पहले भूमि की inspection कर लेना अती आवश्यक है। मिर्च की खेती दोमट मिट्टी वाली भूमि पर करने से किसानो को खेती में सफलता मिलती है। ट्रेक्टर द्वारा भूमि की जुताई कर के उसे भुरभुरा कर लेना चाहिए। ऐसा करने से सरे खरपतवार साफ़ हो जाते है और फसल भी ज्यादा होती है। जब खेती के लिए भूमि की तैयारी कर रहें हो तभी सरे आवश्यक खाद का छिड़काव कर देना चाहिए।

मिर्च की किस्में –
हरी मिर्च की समान्य उन्नत किस्में -
1. काशी अनमोल - इसकी पैदावार 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक है|
2. काशी विश्वनाथ - इसकी पैदावार 220 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक है|
3. जवाहर मिर्च 283 व 218 - इसकी पैदावार 70 से 80 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक है|
4. अर्का सुफल - इसकी पैदावार 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक है|
5. मिर्च की अन्य समान्य उन्नत किस्में पूसा सदाबहार, केटीपीएल- 19, पूसा ज्वाला, भाग्यलक्ष्मी, जे- 218, एआरसीएच- 236, गायत्री, प्रिया, बीएसएस- 14, दुर्गा, पन्त- 1, आजाद मिर्च- 1, कल्यानपुर चमन, एस- 16 और एस- 86235 इत्यादि|

मिर्च (Chilli) की संकर किस्में
1. काशी अर्ली- इसकी पैदावार 300 से 350 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है|
2. काशी हरिता- इसकी पैदावार 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक है|
3. अन्य संकर किस्में एचपीएच- 1900 व 2680, उजाला, यूएस- 611 व 720, तेजस्वनी, अग्नि, चैम्पियन, सूर्या और ज्योति इत्यादि है|
नोट- उपरोक्त मात्रा हरी मिर्चों की दर्शाई गई है| किसान भाई को बीज हमेशा भरोसे की जगह से ही खरीदना चाहिए|

मिर्च की बीज बुवाई –
1. मिर्च (Chilli) के लिए बीज की मात्रा सामान्य के लिए 700 से 800 ग्राम और संकर किस्म के लिए 250 से 300 ग्राम प्रति हेक्टेयर बीज उपयुक्त होता है| बीज को बुवाई से पहले 3 ग्राम बाविस्टिन या कैप्टान प्रति किलोग्राम के हिसाब से उपचारित करना चाहिए|
2. मिर्च के लिए पौधशाला का चुनाव ऐसी जगह करे जहां धुप पर्याप्त मात्रा में आती हो, 1 मीटर चौड़ी और आवश्यकतानुसार लम्बाई की जमीन से 20 सेंटीमीटर क्यारी बना ले, और उसमे गोबर या कम्पोस्ट खाद आवश्यकतानुसार डाले, अब कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी से क्यारी की मिट्टी को उपचारित करना चाहिए|

पौधे का रोपन –
मिर्च के पौधे को गढ्ढे में इस प्रकार रोपें जिससे पौधे का आखरी पत्ता ज़मीन में सटे। मिर्च के पौधे रोपने समय दो पौधे की बिच की दूरी कम से कम 40 से 60 cm होनी चाहिए। पौधा रोपने के 15 से 20 मिनट बाद लोटे से पौधे में पानी पटाए।  उसके बाद लगातार 3 से 4 दिन तक दोनों time सुबह और शाम को पानी पटाए ।

खाद व उर्वरक –
खेत की अंतिम जुताई से पहले प्रति हेक्टेयर करीब 150 से 250 क्विंटल अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद खेत में डाल कर अच्छी तरह मिला दें. इस के अलावा मिर्च का अच्छा उत्पादन लेने के लिए 70 किलोग्राम नाइट्रोजन, 48 किलोग्राम फास्फोरस व 50 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की जरूरत होती है. नाइट्रोजन की आधी मात्रा रोपाई से पहले जमीन की तैयारी के समय व बची मात्रा आधीआधी कर के 30 व 45 दिनों बाद खेत में छिड़क कर तुरंत सिंचाई कर दें|

पौधे की सिचाई –
मिर्च की सफल खेती के लिए और अच्छे फसल के उत्पादन के लिए किसानो को सिचाई को ले कर सतर्क रहना चाहिए। मिर्च की खेती में पानी के बहाव का आने और जाने की क्रिया बराबर बनी रहनी चाहिए। मिर्च के फुल और फल लगने के समय भूमि में नमी का होना अत्यंत जरुरी है क्योंकि पानी के कमी से पौधे का विकाश रुक सकता है।इसकी वजह से फल की गिरने की संभावना बढ़ जाती है ।

खरपतवार नियंत्रण –
रोपाई करने के बाद एक हप्ते बाद सिचाई करते है, ओट आने के बाद निराई गुड़ाई कर देनी चाहिए, जिससे की खरपतवार हमारी फसल में न रहे और आवश्यकता पड़ने पर 15 से 20 दिन पर निराई गुड़ाई करके खेत को खरपतवार से साफ रखना चाहिए|

रोग नियंत्रण -
मिर्च (Chilli) की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग आर्द्रगलन, फफूंद, जीवाणु जम्बलानी और पर्ण कुंचन आदि है| इन रोगों की रोकथाम के लिए बुवाई के समय बीजो को अच्छे से उपचारित करना चाहिए| रोगी पौधों को खेत से उखाड़ कर मिट्टी में दबा देना चाहिए| इसके साथ साथ मेन्कोजेब 0.2 प्रतिशत का 2 बार छिड़काव करना चाहिए|

कीट नियंत्रण –
मिर्च की फसल में लगने वाले किट थ्रिप्स, सफेद मक्खी और माईट प्रमुख है| इनकी रोकथाम के लिए डाइथेन एम 45 या मेटासिस्टोक 1 लिटर को 700 से 800 लिटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर 10 से 15 दिन के अन्तराल से छिड़काव करते रहना चाहिए|

फल तुड़ाई –
इसकी फसल हम दो तरह से पैदा करते है ,एक तो हरी फसल हरी फलियाँ बेचने के लिए दूसरा मसाले के लिए फलियाँ तैयार करते है हरी फसल जब लेना है ३ से४ बार तोड़ाई करना आति आवश्यक है मसाले के लिए जब हम पैदा करते है तो १ से२ बार तोड़ाई करते है I

हरी मिर्च की पैदावार –
फसल के अनुकूल मौसम और उपरोक्त विधि से खेती करने के पश्चात हरे फल की पैदवार सामान्य किस्मों की पैदावार 125 से 200 क्विंटल और संकर किस्मों की पैदावार 200 से 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होनी चाहिए |
दोस्तों, तो ये थी हमारे किशन भाई मिर्च की खेती कैसे करें और अधिक मुनाफा कैसे कमायें, हमे आशा है आपको मिर्च की खेती की जानकारी समझ में आ गई होगी | फिर भी आपका कोई भी सवाल है या सुझाव है, तो हमें कमेंट बॉक्स में बता सकते हैं, हमसे पूछ सकते हैदोस्तों इस ब्लॉग पर आए भी खेती बड़ी से सम्बंधित जानकारी दी जाएगी, जानकारी अच्छी लगे तो इस अपने दोस्तों के शत सोशल साईट पर शेयर जरुर करें, और हमारी इस वेबसाइट को सब्सक्राइब करें ,
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मक्का की खेती कैसे करे Makka (Baby Corn) Ki Kheti Kaise Karen -


मक्का खरीफ ऋतु की फसल है, परन्तु जहां सिचाई के साधन हैं वहां रबी और खरीफ की अगेती फसल के रूप मे ली जा सकती है। मक्का कार्बोहाइड्रेट का बहुत अच्छा स्रोत है। यह एक बहपयोगी फसल है व मनुष्य के साथ- साथ पशुओं के आहार का प्रमुख अवयव भी है तथा औद्योगिक दृष्टिकोण से इसका महत्वपूर्ण स्थान भी है। चपाती के रूप मे, भुट्टे सेंककर, मधु मक्का को उबालकर कॉर्नफलेक्स पॉपकार्न लइया के रूप मे आदि के साथ-साथ अब मक्का का उपयोग कार्ड आइल, बायोफयूल के लिए भी होने लगा है। लगभग 65 प्रतिशत मक्का का उपयोग मुर्गी एवं पशु आहार के रूप मे किया जाता है। साथ ही साथ इससे पौष्टिक रूचिकर चारा प्राप्त होता है। भुट्टे काटने के बाद बची हुई कडवी पशुओं को चारे के रूप मे खिलाते हैं। औद्योगिक दृष्टि से मक्का मे प्रोटिनेक्स, चॉक्लेट पेन्ट्स स्याही लोशन स्टार्च कोका-कोला के लिए कॉर्न सिरप आदि बनने लगा है। बेबीकार्न मक्का से प्राप्त होने वाले बिना परागित भुट्टों को ही कहा जाता है। बेबीकार्न का पौष्टिक मूल्य अन्य सब्जियों से अधिक है।



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जलवायु

मक्का एक hot तथा humid climate का फसल है, इसलिए इसकी खेती के लिए hot तथा humid climate वाले जगहा को चुने | इसकी खेती करने के लिए ऐसे ज़मीन को चुने जहा पानी जमा नहीं होता हो और आसानी से खेत से बाहर निकल जाता हो|

भूमि व उसकी तयारी
मक्का (Maize) की खेती के लिए लगभग सभी प्रकार की कृषि योग्य भूमि में की जा सकती है| लेकिन अच्छी पैदावार के लिए जल निकासी, वायु संचार और दोमट या बलुई दोमट मिट्टी होनी चाहिए| मक्के की खेती करने की लिए इसके खेत को गर्मी के मौसम के end में जब पहली बारिश होती है, जो की june के महीनो में होती है, उस बारिश में अपने खेत को अच्छे से जोत कर अच्छे से पाटा चला कर समतल कर ले | Natural खाद का इस्तेमाल करने से मक्का की फसल अच्छी होती है, इसलिए इसके खाद के लिए पूरी तरह से सड़ी हुई गोबर को जुलाई month के end में अपने खेतो में डाले | जैसे की रबी का मौसम शरू होता है वैसे ही अपने खेत को अच्छे से दो बार जोत कर पाटा चला कर ज़मीन को हलका plane कर ले |

मक्का की किस्में
1. सामान्य या परंपरागत किस्में - ये किस्में इस प्रकार है, जैसे की नवीन, श्वेता, कंचन, शक्ति- 1, आजाद उत्तम, नव ज्योति, प्रभात, गौरव, प्रगति, नर्मदा, मोती, जवाहर मक्का- 216, 8 व 12, पूसा कम्पोजिट- 1, 2 व 3, अरुण, किरन और नवजोत इत्यादि प्रमुख है|
2. संकर किस्में - मक्का (Maize) की संकर किस्में इस प्रकार है, जैसे गंगा- 1, 4 व 11, केएच- 510, डीएचएम- 15, 103 व 109, डेक्कन- 107, पूसा अर्ली 1 व 2, हिम- 129, विवेक- 4, सरताज, प्रकाश, शक्तिमान-2 और जेएच- 3559 ये प्रमुख संकर किस्में है
3. पशु चारा किस्मे - पशुओं के चारे वाली प्रमुख किस्में इस प्रकार है, जैसे जे- 1006, प्रताप चरी- 6 और अफ्रीकन टाल इत्यादि है|

बीज उपचार व बीज बुआई
मक्के की अच्छी production की लिए बीज को बोने से पहले आपने बीजो को अच्छे से जाच कर ले | मक्की के बीजो को बोने से पहले उन्हें फंफूदनाशक दवा का इस्तेमाल कर ले, दवा की जानकरी के लिए आप आपने नजदीकी agricultural department से मिल कर उन से सलह ले सकते है फसल की बुआई खरीफ के लिए जून के अंत तक बुआई कर लेनी चाहिए और रवि के लिए फरवरी के अंत तक बुआई कर लेनी चाहिए|सामान्य मक्का के लिए 18 से 20 किलोग्राम व संकर किस्म के लिए 12 से 15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज का उपयोग करना चाहिए| मक्का की बुआई हल से 3 से 5 सेंटीमीटर गहराई पर करे, लाइन से लाइन की दुरी 55 से 65 सेंटीमीटर रखे और पौधे से पौधे की दुरी 25 से 30 सेंटीमीटर रखनी चाहिए |

खाद व उर्वरक
किसानों को 90 क्विंटल अच्छी पकी हुई गोबर की खाद को खरीफ फसलों की बोआई से पहले प्रति हेक्टेयर की दर से खेत की तैयारी के समय मिट्टी में मिला देना चाहिए. इस से मिट्टी की उर्वरकता लंबे समय तक बनी रहती है. यदि मिट्टी परीक्षण नहीं हुआ हो तो रबी मक्के में 120:60:40 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटाश को डालना चाहिए. 3 साल में 1 बार 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से जिंक सल्फेट का इस्तेमाल करना चाहिए. मिट्टी में यदि बोरान की कमी हो, तो 18 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बोरेक्स पाउडर डालना चाहिए|

उर्वरक डालने का तरीका
नाइट्रोजन - नाइट्रोजन की एकतिहाई मात्रा जमीन में बोआई के समय डालनी चाहिए व बची हुई मात्रा को खड़ी फसल में 2 बराबर भागों में बांट कर देना चाहिए. पहला भाग बोआई के 25 से 30 दिनों बाद घुटने तक पौधों की ऊंचाई होने पर और दूसरा भाग नर मंजरी निकलते वक्त 50 से 60 दिनों पर पौधों के पास इस्तेमाल करना चाहिए. इस्तेमाल की गई नाइट्रोजन से ज्यादा लाभ पाने के लिए इस्तेमाल के बाद उसे मिट्टी से ढक देना चाहिए.

फास्फोरस व पोटाश - फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा बोआई के समय बीज से 5 सेंटीमीटर नीचे बैलनाड़ी या किसी और तरीके से डालनी चाहिए. चूंकि ये उर्वरक मिट्टी में कम घुलती हैं, लिहाजा इन का इस्तेमाल ऐसी जगह करना चाहिए, जहां पर पौधे की जड़ें हों. ऐसा करने से ये मिट्टी में कम स्थिर हो पाते हैं. ध्यान यह रहे कि जस्ता व बोरोन से संबंधित उर्वरकों को भी इसी समय इस्तेमाल करना चाहिए.

मक्का के लिए सिंचाई
सर्वप्रथम सिंचाई बुवाई से पहले करे क्योंकि बीज अंकुरण हेतु पर्याप्त नमी का होना नितान्त आवश्यक है । बुवाई के 15-20 दिन बाद मौसमानुसार जब पौधे 10-12 सेमी. के हो जायें तो प्रथम सिंचाई करनी चाहिए तत्पश्चात् 12-15 दिन के अन्तराल से सर्दियों की फसल में तथा 8-10 दिन के अन्तराल से ग्रीष्मकालीन फसल में पानी देते रहना चाहिए । क्योंकि बेबीकोर्न या गिल्ली बनते समय पर्याप्त नमी होनी आवश्यक है ।

खरपतवार प्रबंधन
खरपतवार किसी भी फसल को प्रभावित कर के उसकी पैदावार को 40 से 50 प्रतिशत कम कर देता है| फसल की बुआई के 3 से 4 सप्ताह के अंदर खरपतवार को निकाल दे या हल या अन्य यंत्र से निराई गुड़ाई करनी चाहिए, या फिर बुआई के तुरंत बाद नमी युक्त भूमि में एट्राजीन खरपतवारनाशी 1 से 1.5 लिटर 800 से 900 लिटर पानी में घोल बनाकर या पेंडामेथलिन 3.5 किलोग्राम का 800 से 900 लिटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करना चाहिए|

मक्का के लिए किट प्रबंधन
गरमी के मौसम में 2-3 बार खेत की गहरी जुताई करनी चाहिए. बोआई के समय कार्बोफ्यूरान 3 जी को 33 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से मिलाएं. 8 ट्राइकोकार्ड (ट्राइकोकार्ड कीलोनिस/जेपोनिकम) अंड परजीवी के 75000-1,00,000 प्यूपा प्रति हेक्टेयर की दर से 10 दिनों के अंतराल में छोड़ने चाहिए. अधिक प्रकोप होने पर इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल की 1 मिलीलीटर मात्रा व क्विनालफास 25 ईसी की 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से ले कर 800-1000 लीटर पानी में मिला कर प्रति हेक्टेयर की दर से 20 दिनों के अंतर पर 2-4 बार छिड़काव करें.

मक्का के लिए रोग प्रबंधन
मक्का की फसल के प्रमुख रोग इस प्रकार है जैसे तना सडन, पत्तियों का झुलसा और तुलसासित रोग इत्यादि लगते है| इनकी रोकथाम के लिए 15 ग्राम स्टेप्टोसाइक्लीन और 500 ग्राम कॉपर आक्सीक्लोराइड का प्रति हेक्टेयर 700 से 800 लिटर पानी में घोल बनाकर छिडकाव करना चाहिए |

मक्का की कटाई -
मक्का की कटाई फसल के अच्छी तरह पकने के बाद ही करनी चाहिए नही तो पैदावार प्रभावित हो सकती है| कटाई के बाद भुट्टो को तोड़ कर धुप में सुखाना चाहिए, उसके बाद मशीन या हाथों से ही दानों को निकाले|

मक्का की पैदावार –
मक्के की फसल की औसतन उपज 80 से 100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर या इस से भी ज्यादा हो सकती है. खरीफ मक्के के मुकाबले रबी मक्के से अधिक उपज प्राप्त होती है, क्योंकि खरीफ के मुकाबले रबी में खेत की तैयारी अच्छी हो जाती है और कीटबीमारियों का प्रकोप भी कम होता है|

भण्डारण –
कटाई व गहाई के पश्चात प्राप्त दानों को धूप में अच्छी तरह सुखाकर भण्डारित करना चाहिए। यदि दानों का उपयोग बीज के लिये करना हो तो इन्हें इतना सुखा लें कि आर्द्रता करीब 12 प्रतिशत रहे। खाने के लिये दानों को बॉस से बने बण्डों में या टीन से बने ड्रमों में रखना चाहिए तथा 3 ग्राम वाली एक क्विकफास की गोली प्रति क्विंटल दानों के हिसाब से ड्रम या बण्डों में रखें। रखते समय क्विकफास की गोली को किसी पतले कपडे में बॉधकर दानों के अन्दर डालें या एक ई.डी.बी. इंजेक्शन प्रति क्विंटल दानों के हिसाब से डालें। इंजेक्शन को चिमटी की सहायता से ड्रम में या बण्डों में आधी गहराई तक ले जाकर छोड़ दें और ढक्कन बन्द कर दें।
दोस्तों, तो ये थी हमारे किशन भाई मक्का की खेती कैसे करें और अधिक मुनाफा कैसे कमायें, हमे आशा है आपको मक्का की खेती की जानकारी समझ में आ गई होगी | फिर भी आपका कोई भी सवाल है या सुझाव है,  तो हमें कमेंट बॉक्स में बता सकते हैं, हमसे पूछ सकते है,  दोस्तों इस ब्लॉग पर आए भी खेती बड़ी से सम्बंधित जानकारी दी जाएगी, जानकारी अच्छी लगे तो इस अपने दोस्तों के शत सोशल साईट पर शेयर जरुर करें, और हमारी इस वेबसाइट को सब्सक्राइब करें , धन्यवाद |

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भिन्डी की खेती कैसे करे | Bhindi ki Kheti Kaise Karen -Ladyfinger Farming Information Guide -


भिन्डी जिसे की हम ओंकरा और लेडीज फिंगर (ladyfinger) के नाम से भी जानते है एक ऐसी खेती जो की गर्मियों में उगाई जाने वाली एक प्रमुख फसल है | सब्जियों में भिन्डी गुणों से भरपूर एक ऐसी फसल है जिसकी खेती किसानो के लिए भी उतनी फायदेमंद खेती है  जितना की इसे खाने का फायदा है|


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भिन्डी की खेती के लिए जलवायु
अगर आप भिन्डी (BHINDI ) की खेती के बारे में सोच रहे हैं तो आपको भिंडी की जलवायु की जानकारी होनी अति आवश्यक हे क्योकि इसकी उन्नत खेती के लिए इसकी जनकारी होना जरुरी हे । क्योंकि सही मौसम की जानकारी ना होने के कारण आपको नुकसान उठाना पड़ सकता है। हम अगर मौसम की बात करें तो भिन्डी की खेती करने के लिए के लिए गर्मी का मौसम उत्तम रहता है। यानि की आप गर्मी के मौसम में भिन्डी की खेती करके उत्पादन अच्छे से प्राप्त कर सकते है। भिंडी की खेती के लिए उत्तम तापमान 20 डिग्री से 40 डिग्री तक होना चाहिए अगर तापमान इससे ज्यादा होगा तो फूल गिर जाते हैं।
भिन्डी की उन्नतशील किस्में
किसी भी फसल की अच्छी आवक के बहुत जरुरी है की हम ऐसी किस्मो का चयन करे की जो की उन्नत हो |ये निम्न प्रमुख भिन्डी की उन्नत किस्मे है - आजाद भिन्डी 1, जिसे आजाद गंगा कहते है आजाद भिन्डी 2, आजाद भिन्डी 3, यह आजाद कृष्णा है, लाल रंग की होती है और आजाद भिन्डी 4 इसके अलावा परभनीक्रांति, वर्षा उपहार, पूसा ऐ 4, अर्का अनामिका एवम अर्का अभय यह उन्नतशील प्रजातियाँ है जिनमे बीमारी नहीं लगती है |

भिन्डी की खेती के लियें भूमि और उसकी तयारी
भिन्डी की खेती के लिए अगर भूमि की बात करें तो इसे किसी भी तरह की भूमि पर उगाया जा सकता है पर हल्की दोमट मिट्टी जिसमे जल निकासी अच्छी हो बढ़िया मानी जाती है।  भूमि की तैयारी की बात करें तो । भिन्डी की खेती के लिए खेत को जोतकर उसमे से खरपतवार , घास फूस , कंकर पत्थर जो भी फसल को नुकसान पहुचाये उसे निकल लेना चाहिए । इससे आपके फसल की उत्पादन क्षमता बढ़ जायेगी । एक बात का ध्यान दें अगर आपके खेत में प्लास्टिक है तो उसे जरूर निकाल लीजिये प्लास्टिक का होना न तो किसी फसल के लिए अच्छा होता है ना ही खेत के लिए। खेत को 2 से 3 बार पलेवा जरूर करना चाहिए जिससे खेत सही हो जाता हे | और साथ में समतल भी बना लेना चाहिए अगर खेत समतल नहीं बना सकते हो तो खेत में क्यारियां जरूर बना लेनी चाहिए जिससे की सिंचाई करने में आपको कोई दिक्कत ना हो और सिचाई आसानी से की सके।

बीज की मात्रा व बुआई समय
सिंचित अवस्था में 2.5 से 3 किग्रा तथा असिंचित दशा में 5 -7 किग्रा प्रति हेक्टेअर की आवश्यकता होती है । संकर किस्मों के लिए 5 कि.ग्रा. प्रति हेक्टर की बीजदर पर्याप्त होती है। इसकी वुवाई जुलाई का दूसरा पखवारा सर्वोतम होता है I और इसकी वुवाई लाइनो में की जाती है, लाइन से लाइन की दूरी 45 सेंटी मीटर पौध से पौध की दूरी 30 सेंटी मीटर रखनी चाहिए, जिससे की हमारी उत्तम पैदावार मिल सके I

भिन्डी की खेती में सिंचाई
सिंचाई मार्च में 10 -12 दिन, अप्रैल में 7 - 8 दिन और मई-जून में 4 - 5 दिन के अन्तर पर करें । बरसात में यदि बराबर वर्षा होती है तो सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है ।

खाद और उर्वरक
जब हम खेत तैयार करते है उस समय 200 - 250 कुन्तल प्रति हेक्टर के हिसाब से कम्पोस्ट या गोबर की सड़ी खाद आखिरी जुताई में मिला देना चाहिए, खेत वुवाई करते समय नाइट्रोजन इससे पूरा नहीं होता है तो नाइट्रोजन तत्व के रूप में 80 किलो ग्राम नाइट्रोजन, 60 किलो ग्राम फास्फोरस तथा 40 किलो ग्राम पोटाश की आवश्कता पड़ती है, और आखिरी जुताई में वुवाई से पहले आधी नाइट्रोजन की मात्रा खेत में जुताई करते समय दे देना चाहिए, फास्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा आखिरी जुताई में प्रयोग करते हैI

निराई व गुड़ाई
नियमित निंदाई - गुड़ाई कर खेत को खरपतवार मुक्त रखना चाहिए। बोने के 15 - 20 दिन बाद प्रथम निंदाई - गुड़ाई करना जरुरी रहता है। खरपतवार नियंत्रण हेतु रासायनिक कीटनाशकों का भी प्रयोग किया जा सकता है। खरपतवारनाशी फ्ल्यूक्लरेलिन के 1.0 कि.ग्रा. सक्रिय तत्व मात्रा को प्रति हेक्टेयर की दर से पर्याप्त नम खेत में बीज बोने के पूर्व मिलाने से प्रभावी खरपतवार नियंत्रण किया जा सकता है।
कीट व रोग नियंत्रण

कीट नियंत्रण – भिन्डी की फसल में तना वेधक और फल वेधक दोनों तरह के कीट लगते है, इसके बचाव के लिए हम कार्बोसल्फान 25 ई. सी. 1.5 लीटर 800 से 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टर के हिसाब हर 10 से 15 दिन के अन्तराल  छिडकाव करते रहना चाहिए, लेकिन यह ध्यान रखे जब छिडकाव इसका करे, इसके पूर्व भिन्डी की तोड़ाई कर लेना चाहिए, जिससे की इसका बुरा प्रभाव खाने वालो पर न पड़ सके I

रोग नियंत्रण - इसमें सबसे अधिक येलोवेन मोजेक जिसे पीला रोग कहते है, यह रोग वाइरस के द्वारा या विषाणु के द्वारा फैलता है, जिससे की फल पत्तियां और पेड़ पीला पड़ जाता है, इसके नियंत्रण हेतु रोग रहित प्रजातियाँ का प्रयोग करना चाहिए या मेलाथियान 50 ई सी यह १ लीटर को 800 से 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टर के हिसाब से हर 10 से 15 दिन के अंतराल पर छिडकाव करते रहना चाहिए, जिससे यह पीला रोग उत्पन्न ही नहीं होता है I

भिन्डी के फलों की तोड़ाई
अंत में भिन्डी के पौधे से फलों को तोड़ने का काम किया जाता है। बिज बोने के लगभग 2 महीनो के बाद ये काम किया जाता है। जब फल तोड़ने योग्य हो जाएँ तो बिना पौधे को हानि पहुचाये फलों को तोड़ लेना चाहिए और फलों की तोड़ने का कार्य 4 से 6 दिन के अंतर पर करना चाहिए।

पैदावार
स्वस्थ फसल पर आपको 125 से 150 कुन्तल खाने योग फालियाँ मिलती है I

दोस्तों, तो ये थी हमारे किशन भाई भिन्डी की खेती कैसे करें और अधिक मुनाफा कैसे कमायें, हमे आशा है आपको भिन्डी की खेती की जानकारी समझ में आ गई होगी | फिर भी आपका कोई भी सवाल है या सुझाव है,  तो हमें कमेंट बॉक्स में बता सकते हैं, हमसे पूछ सकते है,  

दोस्तों इस ब्लॉग पर आए भी खेती बड़ी से सम्बंधित जानकारी दी जाएगी, जानकारी अच्छी लगे तो इस अपने दोस्तों के शत सोशल साईट पर शेयर जरुर करें, और हमारी इस वेबसाइट को सब्सक्राइब करें , धन्यवाद|
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गेंदा के फूल की खेती कैसे करे | गेंदा के फूल की खेती से कमाइए लाखों रुपए - How to grow Marigold Flower in Hindi -


गेंदा हर मौसम में प्राप्त होने के साथ साथ इसकी दूसरी विशेषता है कि यह कई दिनों तक ताजा बना रहता है। गेंदे का पौधा हर प्रकार की जलवायु के प्रति सहनशील होता है तथा लम्बे समय तक फूलता रहता है। गेंदे का उपयोग विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों में सजाने के लिए किया जाता है। इसका उपयोग मंदिरों में पूजा के लिए तथा मंदिर को सजाने में भी किया जाता है। विभिन्न प्रकार के सामाजिक कार्यक्रमों में स्वागत हेतु भी गेंदे की फूल का माला बनाकर किया जाता है। पर गेंदे का अत्यधिक प्रयोग खासकर शादी ब्याह में मंडप सजाने, गाड़ी सजाने तथा वरमाला आदि बनाने में होता है।


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गेंदे की खेती के लियें जलवायु –
गेंदे की खेती संपूर्ण भारतवर्ष में सभी प्रकार की जलवायु में की जाती है। विशेषतौर से शीतोषण और सम-शीतोष्ण जलवायु उपयुक्त होती है। नमीयुक्त खुले आसमान वाली जलवायु इसकी वृध्दि एवं पुष्पन के लिए बहुत उपयोगी है लेकिन पाला इसके लिए नुकसानदायक होता है। इसकी खेती सर्दी, गर्मी एवं वर्षा तीनों मौसमों में की जाती है। इसकी खेती के लिए 14.5-28.6 डिग्री सैं. तापमान फूलों की संख्या एवं गुणवत्ता के लिए उपयुक्त है जबकि उच्च तापमान 26.2 डिग्री सैं. से 36.4 डिग्री सैं. पुष्पोत्पादन पर विपरीत प्रभाव डालता है।

भूमि और उसकी तयारी –
गेंदे की अच्छी पैदावार के लिए दोमट भूमि जिसकी जल धारण क्षमता अच्छी हो, जिसका पी.एच. मान 7-7.5 के बीच हो की जा सकती है। गेंदे की उचित वृद्धि के लिए 18-20 डिग्री सेन्टीग्रेड तापमान होना चाहिए।
गेंदे की खेती के लिए एक बखर चलाकर भूमि में 200-300 क्विंटल गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद प्रति हेक्टेयर में फैलाकर दूसरी बार बखर चलाकर अच्छी तरह से मिला देना चाहिए, खेत में अधिक बार बखर नहीं चलाना चाहिए क्योंकि उत्पादन लागत में वृद्धि हो जाएगी तथा बार-बार बखर चलाने से उत्पादन में विशेष वृद्धि नहीं होती है।

गेंदे की किस्मे –
गेंदा की चार प्रकार की किस्मे पायी जाती है प्रथम अफ्रीकन गेंदा जैसे कि क्लाइमेक्स, कोलेरेट, क्राउन आफ गोल्ड, क्यूपीट येलो, फर्स्ट लेडी, फुल्की फ्रू फर्स्ट, जॉइंट सनसेट, इंडियन चीफ ग्लाइटर्स, जुबली, मन इन द मून, मैमोथ मम, रिवर साइड ब्यूटी, येलो सुप्रीम, स्पन गोल्ड आदि हैI ये सभी व्यापारिक स्तर पर कटे फूलो के लिए उगाई जाती हैI दूसरे प्रकार की मैक्सन गेंदा जैसे कि टेगेट्स ल्यूसीडा, टेगेट्स लेमोनी, टेगेट्स मैन्यूटा आदि है ये सभी प्रमुख प्रजातियां हैI तीसरे प्रकार की फ्रेंच गेंदा जैसे कि बोलेरो गोल्डी, गोल्डी स्ट्रिप्ट, गोल्डन ऑरेंज, गोल्डन जेम, रेड कोट, डेनटी मैरिएटा, रेड हेड, गोल्डन बाल आदि हैI इन प्रजातियों का पौधा फ़ैलाने वाला झड़ी नुमा होता हैI पौधे छोटे होते है देखने में अच्छे लगते है I चौथे संकर किस्म की प्रजातिया जैसे की नगेटरेटा, सौफरेड, पूसा नारंगी गेंदा, पूसा बसन्ती गेंदा आदि I

गेंदे की बीज बुवाई –
गेंदे की बीज की मात्रा किस्मों के आधार पर लगती हैI जैसे कि संकर किस्मों का बीज 700 से 800 ग्राम प्रति हेक्टेयर तथा सामान्य किस्मों का बीज 1.25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता हैI भारत वर्ष में इसकी बुवाई जलवायु की भिन्नता के अनुसार अलग-अलग समय पर होती हैI उत्तर भारत में दो समय पर बीज बोया जाता है जैसे कि पहली बार मार्च से जून तक तथा दूसरी बार अगस्त से सितम्बर तक बुवाई की जाती हैI

पोषण प्रबंधन –
गेंदा के पौधों की रोपाई समतल क्यारियो में की जाती है रोपाई की दूरी उगाई जाने वाली किस्मों पर निर्भर करती हैI अफ्रीकन गेंदे के पौधों की रोपाई में 60 सेंटीमीटर लाइन से लाइन तथा 45 सेंटीमीटर पौधे से पौधे की दूरी रखते है तथा अन्य किस्मों की रोपाई में 40 सेंटीमीटर पौधे से पौधे तथा लाइन से लाइन की दूरी रखते है|

खाद एवं उर्वरक –
गेंदा की अच्छी ऊपज  है तो खेत की तैयारी से पहले 200 क्विंटल कम्पोस्ट प्रति हेक्टेयर की दर से मिट्टी में मिला दें । तत्पश्चात 120-160 किलो नेत्रजन, 60-80 किलो फास्फोरस एवं 60-80 किलोग्राम पोटाश का प्रयोग प्रति है क्टेयर की दर से करें। नेत्रजन की आधी मात्रा एवं फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा खेत की अन्तिम जुताई के समय मिट्टी में मिला दें। नेत्रजन की शेष आधी मात्रा पौधा रोप के 30-40 दिन के अन्दर प्रयोग करें।

खरपतवार नियंत्रण –
खरपतवार नियंत्रण हाथ से तथा रसायनिक विधि दोनों तरह से कर सकते है लेकिन पौधे की उचित वृद्धि के लिए खरपतवार खुरपी की सहायता से हाथ से करना चाहिए, ऐसा करने से भूमि में वायु संचार बढऩे से पौधों की बढ़वार अच्छी होती है, इसके लिए जहां तक संभव हो सके खुरपी की सहायता, हेण्ड हो आदि से ही करनी चाहिए।

गेंदे की फसल में सिंचाई –
गेंदा एक शाकीय पौधा है, जिसे अधिक मात्रा में पानी की जरूरत पड़ती है, पानी की कमी से पौधा मुरझाने लगता है जिससे उत्पादन में कमी आ जाती है इस प्रकार सिंचाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए बरसात में यदि समय-समय पर पानी गिरता रहे तो अतिरिक्त सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती है। यदि पानी समय पर नहीं बरसे तो आवश्यकतानुसार पानी देना चाहिए। शीतकालीन में 5-8 दिन के अंतराल से सिंचाई करनी चाहिए। इसी प्रकार गर्मीयों में 3-4 दिन बाद सिंचाई करनी चाहिए।

निराई – गुड़ाई –
गेंदा के खेत को खरपतवारो से साफ़ सुथरा रखना चाहिए | तथा निराई - गुड़ाई करते समय गेंदा के पौधों पर 10 से 12 सेंटीमीटर ऊंची मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए | जिससे कि पौधे फूल आने पर गिर न सके |

कीट नियंत्रण –
गेंदा में कलिका भेदक, थ्रिप्स एवं पर्ण फुदका कीट लगते है इनके नियंत्रण हेतु फास्फोमिडान या डाइमेथोएट 0.05 प्रतिशत के घोल का छिड़काव 10 से 15 दिन के अंतराल पर दो-तीन छिड़काव करना चाहिए अथवा क़यूनालफॉस 0.07 प्रतिशत का छिड़काव आवश्यकतानुसार करना चाहिए I

रोग नियंत्रण –
गेंदा में आर्ध पतन, खर्रा रोग, विषाणु रोग तथा मृदु गलन रोग लगते हैI आर्ध पतन हेतु नियंत्रण के लिए रैडोमिल 2.5 ग्राम या कार्बेन्डाजिम 2.5 ग्राम या केप्टान 3 ग्राम या थीरम 3 ग्राम से बीज को उपचारित करके बुवाई करनी चाहिएI खर्रा रोग के नियंत्रण के लिए किसी भी फफूंदी नाशक को 800 से 1000 लीटर पानी में मिलाकर 15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करना चाहिए  विषाणु एवं गलन रोग के नियंत्रण हेतु मिथायल ओ डिमेटान 2 मिलीलीटर या डाई मिथोएट एक मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करना चाहिए I

तुड़ाई और कटाई –
जब हमारे खेत में गेंदा की फसल तैयार हो जाती है तो फूलो को हमेशा प्रातः काल ही काटना चाहिए तथा तेज धूप न पड़े फूलो को तेज चाकू से तिरछा काटना चाहिए फूलो को साफ़ पात्र या बर्तन में रखना चाहिएI फूलो की कटाई करने के बाद छायादार स्थान पर फैलाकर रखना चाहिएI पूरे खिले हुए फूलो की ही कटाई करानी चाहिएI कटे फूलो को अधिक समय तक रखने हेतु 8 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान पर तथा 80 प्रतिशत आद्रता पर तजा रखने हेतु रखना चाहिएI कट फ्लावर के रूप में इस्तेमाल करने वाले फूलो के पात्र में एक चम्मच चीनी मिला देने से अधिक समय तक रख सकते है I

गेंदे की पैदावार –
गेंदे की उपज भूमि की उर्वरा शक्ति तथा फसल की देखभाल पर निर्भर करती है इसके साथ ही सभी तकनीकिया अपनाते हुए आमतौर पर उपज के रूप में 125 से 150 कुंतल प्रति हेक्टेयर फूल प्राप्त होते है कुछ उन्नतशील किस्मों से पुष्प उत्पादन 350 कुंतल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होते है यह उपज पूरी फसल समाप्त होने तक प्राप्त होती हैI

दोस्तों, तो ये थी हमारे किशन भाई गेंदे की खेती कैसे करें और अधिक मुनाफा कैसे कमायें, हमे आशा है आपको गेंदे की खेती की जानकारी समझ में आ गई होगी | फिर भी आपका कोई भी सवाल है या सुझाव हैतो हमें कमेंट बॉक्स में बता सकते हैं, हमसे पूछ सकते हैदोस्तों इस ब्लॉग पर आए भी खेती बड़ी से सम्बंधित जानकारी दी जाएगी, जानकारी अच्छी लगे तो इस अपने दोस्तों के शत सोशल साईट पर शेयर जरुर करें, और हमारी इस वेबसाइट को सब्सक्राइब करें , धन्यवाद |


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