.

Contact Form

Name

Email *

Message *

मटर की खेती कैसे करें | मटर की खेती से कमाइए लाखों रुपए - Matar ki kheti kaise karen -


शीतकालीन सब्जियो मे मटर का स्थान प्रमुख है। इसकी खेती हरी फल्ली (सब्जी), साबुत मटर, एवं दाल के लिये किया जाता है।  मटर की खेती सब्जी और दाल के लिये उगाई जाती है। मटर दाल की आवश्यकता की पूर्ति के लिये पीले मटर का उत्पादन करना अति महत्वपूर्ण है, जिसका प्रयोग दाल, बेसन एवं छोले के रूप में अधिक किया जाता है ।
Matar ki kheti kaise karen


आजकल मटर की डिब्बा बंदी भी काफी लोकप्रिय है। इसमे प्रचुर मात्रा मे प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, फास्फोरस, रेशा, पोटेशियम एवं विटामिन्स पाया जाता है। देश भर मे इसकी खेती व्यावसायिक रूप से की जाती है।

मटर की खेती के लिये जलवायु –
मटर की फसल के लिए नम और ठंडी जुलाई की आवश्यकता होती है अत: हमारे देश में अधिकांश स्थानों पर मटर की फसल रबी  की ऋतु में गई जाती है  इसकी बीज अंकुरण के लिये औसत 22 डिग्री सेल्सियस एवं अच्छी वृद्धि एवं विकास के लिये 10-18 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है। यदि फलियो के निर्माण के समय गर्म या शुष्क मौसम हो जाये तो मटर के गुणो एवं उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।उन सभी स्थानों पर जहां वार्षिक वर्षा 60-80 से.मी. तक होती है मटर की फसल सफलता पूर्वक उगाई जा सकती है मटर के वृद्धि काल में अधिक वर्षा का होना अत्यंत हानिकारक होता है |

खेत व खेत की तैयारी -
मटर की खेती के लिए अच्छे जल निकास वाली जीवांशयुक्त दोमट एवं बलुई दोमट भूमि सर्वोत्तम होती हैI अच्छे साधनो की उपलब्धता होने पर सभी प्रकार की भूमि में पैदावार ली जा सकती है I खेत की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा बाद में तीन-चार जुताइयां देशी हल या कल्टीवेटर से करके भली भाँति समतल कर भुरभुरा बना लेना चाहिए और आख़िरी जुताई करने के बाद पाटा अच्छी तरह से लगाकर नमी को दबा देना चाहिए जिससे बुवाई के समय नमी अच्छी तरह बनी रह सके I

मटर की उन्नतशील किस्में –
मटर की किस्मों को दो भागों में विभाजित किया गया है। इसमें एक फील्ड मटर और दूसरी सब्जी मटर या गार्डन मटर है|

फील्ड मटर - इस वर्ग में किस्मों का उपयोग दाने के लिए, साबुत मटर, दालों के लिए और चारे के लिए किया जाता है। इन किस्मों में प्रमुख रूप से रचना, स्वर्णरेखा, अपर्णा, हंस, जेपी 885, विकास, शुभार, पारस, अंबिका आदि कई किस्में मौजूद हैं।
सब्जी मटर - यह मटर की दूसरा वर्ग है, जिसकी किस्मों का उपयोग सब्जियों के लिए किया जाता है। इनमें प्रमुख किस्में इस प्रकार हैं।
आर्केल - यह एक यूरोपियन अगेती किस्म है। इसके बोआई के बाद 55 से 65 दिनों के अंदर फसल तैयार हो जाती है। इससे किसान को हरी फलियों की लगभग 70 से 100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज प्राप्त होती है। इसकी फलियां आठ से दस सेंटीमीटर तक लंबी होती हैं और प्रत्येक फली में पांच से छह दाने होते हैं। यह जल्द तैयार होनी फसल है।
अर्ली बैजर - यह एक तरह की अगेती किस्म है। बोआई के 65 से 70 दिनों बाद इसकी फलियां तोड़ने के योग्य हो जाती हैं। वहीं, इस किस्म से किसानों को 80 से 100 क्विंटल तक फसल का उत्पादन प्राप्त हो सकता है। इस किस्म से फलियां सात सेंटीमीटर तक लंबी होती हैं और दाने बड़े आकार में होते हैं।
बोनविले - यह किस्म झुर्रीदार होता है। इसकी फलियां बोआई के 80 से 85 दिन बाद तोड़ने लायक हो जाती हैं। जबकि फलियों की औसत उत्पादन किसानों को 130 से 140 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक मिल सकती है।
असौजी - यह किस्म अगेती बौनी किस्म है। इसमें किसानों को पांच से छह सेंटीमीटर तक लंबी फलियां प्राप्त होती हैं। वहीं 55 से 65 दिनों में तैयार होने वाली इस फसल से किसानों को 90 से 100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन हो जाता है।
अर्ली दिसंबर - यह किस्म भी अगेती किस्म है और 55 से 60 दिनों में फसल तैयार हो जाती है और फलियां तोड़ने योग्य होती हैं। इस किस्म से किसानों को औसत उपज 80 से 100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त हो सकती है। इस किस्म से भी फलियों की लंबाई लगभग छह से सात सेंटीमीटर होती है।
पन्त उपहार - इस किस्म की बुआई से 65 से 75 दिनों तक फलियां तोड़ने योग्य हो जाती हैं। किसानों की इस किस्म की बुआई 25 अक्टूबर से 15 नवंबर तक करने देनी चाहिए।
जवाहर मटर - यह मध्यम किस्म है। इसकी फलियां बुआई से 65 से 75 दिनों बाद तोड़ी जा सकती हैं। इस किस्म में फलियों की औसत लंबाई सात से आठ सेंटीमीटर होती है । वहीं प्रत्येक फली से किसानों को पांच से छह बीज प्राप्त होते हैं। इससे किसानों को फलियों की औसत पैदावार 130 से 140 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक प्राप्त हो जाती हैं।
मध्यम किस्में - यह किस्में बोआई के बाद 85 से 90 दिनों बाद तोड़ने योग्य हो जाती हैं। इन किस्मों में बोनविले, काशी शक्ति, एनडीवीपी-8 और 10, टी9, टी 56 और एनपी 29 प्रमुख हैं। इसके अलावा पछेती किस्में (देर से तैयार होने वाली) भी हैं।
बीज की मात्रा और बीज बुवाई –
मटर की खेती के लिए अगेती किस्मों में 100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज लगता है, वहीं मध्यम और पछेती किस्मों के लिए 80 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर लगता है। बीज हमेशा प्रमाणित और उपचारित होना चाहिए। बीज जनित रोगो से बचाव के लिए 2 ग्राम थीरम या 3 ग्राम मेन्कोजेब से प्रति किलोग्राम बीज को उपचारित करना चाहिएI बीज शोधन के बाद एक पैकेट या 200 ग्राम राइजोबियम कल्चर 10 किलोग्राम बीज में मिलाकर छाया में सुखाने के बाद ही बुवाई करनी चाहिएI अगेती किस्मों की बुवाई अक्टूबर के प्रथम सप्ताह से नवम्बर के प्रथम सप्ताह तक करनी चाहिए I मध्य एवं पिछेती प्रजातियों की बुवाई 15 अक्टूबर से 15 नवम्बर तक करनी चाहिएI बुवाई लाइनो में हल के पीछे 20 से 25 सेंटीमीटर की दूरी पर करनी चाहिए लाइन से लाइन की दूरी 20 - 25 सेंटीमीटर रखी जाती है और अधिक घना होने पर जमाव के बाद विरला कर देना चाहिए I
खाद व उर्वरक –
सब्जी मटर की खेती में मोटे तौर पर 20 टन खूब सड़ी हुई एफवाईएम (सड़ी गोबर की खाद), 25 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50-70 किलोग्राम फास्फोरस और 50 किलोग्राम पोटाश युक्त उर्वरक प्रति हेक्टेयर देना बेहतर होता है. नाइट्रोजनयुक्त उर्वरकों का ज्यादा इस्तेमाल नाइट्रोजन स्थिरीकरण और गांठों के निर्माण में बाधा पहुंचाता है. मटर की खेती में फास्फेटिक उर्वरक अच्छा नतीजा देता है. इस से गांठों का निर्माण अच्छा होता है. नाइट्रोजन की आधी मात्रा और फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा बोआई के 25-30 दिनों बाद टाप ड्रेसिंग के रूप में देनी चाहिए|
खरपतवार नियंत्रण –
बोआई के समय ही खरपतवारों का रासायनिक विधि द्वारा नियंत्रण करना चाहिए. इस के लिए पेडीमेथलीन 30 ईसी की 3.3 लीटर मात्रा को 600-800 लीटर पानी में घोल कर बोआई के 2 दिन बाद प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें या  2.25 लीटर वासालीन को 1000 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें. बोआई के 25-30 दिनों बाद निराईगुड़ाई करने से खरपतवार नियंत्रण के साथ ही साथ जड़ों को हवा भी मिल जाती है.
सिचाई प्रबंधन –
मटर की देशी व उन्नत शील जातियों में दो सिचाई की आवश्यकता पड़ती है शीतकालीन वर्षा हो जाने पर दूसरी सिचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती पहली सिचाई फूल निकलते समय बोने के ४५ दिन बाद व दूसरी सिचाई आवश्यकता पड़ने पर फली बनते समय बीज बोने के 60 दिन बाद करें साधारणतया मटर को हल्के  पानी की आवश्यकता होती है सिचाई सदैव हलकी करनी चाहिए |
कीट नियंत्रण –
इसमे पत्ती में सुरंग बनाने वाले गिडार एवं फली बेधक कीट लगते हैI सबसे पहले कीट वाले पौधों को उखाड़कर अलग कर देना चाहिए तथा अगेती बोई गयी फसलों में बुवाई के समय कूंड में कार्बोफ्यूरान 15 किलोग्राम अथवा 5 किलोग्राम फोरेट प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिएI फली बेधक देखने में बैसिलसफ्यूरीजेंसिस 1 किलोग्राम या फेनवेलरेट 750 मिलीलीटर या मोनोक्रोटोफॉस एक लीटर को पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिएI
रोग नियंत्रण –
सब्जी मटर में कई रोग लगते है जैसे कि एस्कोकाईटा, ब्लाइट, फ्यूजेरियम विल्ट, बैक्टीरियल ब्लाइट, झुलसा, उकठा रोग, बुकनी रोग आदि लगते हैI बुकनी, उकठा, सफ़ेद विगलन के लिए कार्बेन्डाजिम 500 ग्राम को 600 से 800 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करना चाहिएI ब्लाइट के लिए 50 डब्लू. पी. बैविस्टीन 50 ग्राम प्रति 100 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिएI इसके साथ ही बीज शोधन करके बुवाई करनी चाहिए तथा रोगरोधी प्रजातियों की बुवाई करनी चाहिएI
मटर की तुड़ाई –
फूल आने के तीन सप्ताह बाद फलियां तुड़ाई योग्य हो जाती है फलियां तैयार होने पर सामान्यतः7 से 10 दिन के अंतराल पर 3 से 4 तुड़ाई करनी चाहिएI
मटर की उपज –
अगेती प्रजातियों में फलियों की पैदावार 50 से 60 कुंतल प्रति हेक्टेयर तथा मध्य एवं पिछेती प्रजातियों की पैदावार 60 से 125 कुंतल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती हैI
दोस्तों, तो ये थी हमारे किशन भाई मटर की खेती कैसे करें और अधिक मुनाफा कैसे कमायें, हमे आशा है आपको मटर की खेती की जानकारी समझ में आ गई होगी | फिर भी आपका कोई भी सवाल है या सुझाव है, तो हमें कमेंट बॉक्स में बता सकते हैं, हमसे पूछ सकते है, दोस्तों इस ब्लॉग पर आए भी खेती बड़ी से सम्बंधित जानकारी दी जाएगी, जानकारी अच्छी लगे तो इस अपने दोस्तों के शत सोशल साईट पर शेयर जरुर करें, और हमारी इस वेबसाइट को सब्सक्राइब करें ,
धन्यवाद |


Tag: Matar ki kheti, matar farming, matar farming india, Agriculture Farming, matar ki kheti kaise karen, kamai ke mauke,
Share:

No comments:

Post a Comment

Popular Posts

Subscribe Now

Get All The Latest Updates

email updates