बैंगन
एक पौष्टिक सब्जी है। इसमें विटामिन ए एवं बी के अलावा कैल्शियम, फ़ॉस्फ़रस तथा लोहे जैसे खनीज भी होते है। यदि इसकी उपयुक्त उत्तम क़िस्में
तथा संकर किंस्में बोई जाए और उन्नत वैज्ञानिक सस्य क्रियाएं अपनाई जाएं तो इसकी
फ़सल से काफ़ी अधिक उपज मिल सकती है।
अनुकूल जलवायु –
बैंगन
की खेती के लिए हमे ऐसी जलवायु की आवश्यकता होती है जो की ना तो बहुत आधिक गर्म हो और ना ही जलवायु में सुखापण हो
बैंगन सम शीतोष्ण कही जाने वाली जलवायु
में अच्छी तरह पैदावार करती है|
उपयुक्त भूमि –
इसके
लिए जलवायु बरसात होती है, जिसको समशीतोष्ण कहेगे, यह हर तरह के उपजाऊ भूमि में की जा सकती है, लेकिन
दोमट मिट्टी सर्वोतम होती हैI
बैंगन की क़िस्में –
बैंगन
की उन्नतशील किस्मे निम्न लिखित हैं -
1.पूसा हाईब्रिड-5 – पौधे की अच्छी बढ़वार तथा शाखाएँ
ऊपर को उठी हुई होती है, फल मध्यम लम्बाई के, चमकदार तथा गहरे बैंगनी रंग के होते है। बुआई से पहली तुड़ाई में 85- 90
दिन लगते है। उत्तरी तथा मध्य भारत के मैदानी क्षेत्रों तथा समुद्र तट को छोड़ कर
कर्नाटक, केरल, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु क्षेत्र के लिये उपयुक्त है। उपज 450 से 650 क्विंटल प्रति
हेक्टेअर होती है।
2.पूसा हाईब्रिड-6 - पौधे
मध्यम सीधे खडे रहने वाले होते हैं। फल गोल, चमकदार, आकर्षक
बैंगनी रंग के होते है, प्रत्येक फल का वजन लगभग 200 ग्राम
होता है। बुआई से पहली गुड़ाई में 85-90 दिन लगते है। उपज 400-600 क्विंटल प्रति
हेक्टेअर होती है।
3.पूसा हाईब्रिड-9 - पौधे
सीधे खडे रहने वाले होते हैं। फल अण्डाकार गोल, चमकदार बैंगनी रंग के होते हैं।
प्रत्येक फल का वजन लगभग 300 ग्राम होता है । बुआई के पहली तुडाई में 85-90 दिन
लगते है । गुजरात तथा महाराष्ट्र क्षेत्र के लिए उपयुक्त है । इसकी औसत उपज 500
क्विंटल प्रति हेक्टेअर है।
4.पूसा क्रान्ति - इस
क़िस्म के फल गहरे बैंगनी रंग के मध्यम लम्बाई के होते है । यह क़िस्म बसन्त तथा सर्दी
दोनों मौसमों के लिये उपयुक्त पाई गई है । इसकी औसत उपज 300 किंवटल प्रति हेक्टेअर
है।
5.पूसा भैरव - इसके
फल गहरे बैंगनी रंग के थोड़े मोटे व कुछ लम्बे होते है । यह क़िस्म फल-गलन रोग
प्रतिरोधी है।
6.पूसा पर्पल कलस्टर - पौधें
सीधे खडे रहने वाले होते है। पत्तियाँ रगंदार होती है। फल 9 से 12 सें०मी० लम्बे
तथा गुच्छे में लगते है। यह क़िस्म पहाडी क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है। यह क़िस्म फल
तथा तना छेदक, जीवाणु तथा उकटा रोग के लिए कुछ रोधक है। पूसा अनुपम
पौधे मध्यम तथा सीधे होते हैं। फल पतले, बैगनी रंग के होते
हैं। फल गुच्छे में लगते है। यह क़िस्म उकठा रोग प्रतिरोधी है।
7.पूसा बिन्दु - इस
क़िस्म के बैंगन छोटे,गोल और चमकदार होते हैं । जिनका
रंग गहरा बैंगनी डंठल चित्तीदार होता है । यह क़िस्म 90 दिन में तैयार हो जाती है ।
औसत उपज 300 क्विंटल प्रति हेक्टेअर है । यह क़िस्म उत्तरी मैदानी क्षेत्रों के
लिये उपयुक्त है।
8.पूसा उत्तम 31 - इसके फल अण्डाकार गोल चमकदार, गहरे बैंगनी रंग और मझौले आकार के होते हैं। बुआई से पहली तुड़ाई में 85-90
दिन लगते हैं। औसत उपज425 क्विंटल प्रति हेक्टेअर है। यह क़िस्म उत्तरी मैदानी तथा
पश्चिमी क्षेत्रों के लिये उपयुक्त है ।
9.पूसा उपकार - इसके
फल गोल चमकदार, गहरे बैंगनी रंग और मझौले आकार के होते हैं। फल का
औसत वजन 200 ग्राम होता है । पहली तुडाई फसल बोने के 85 दिन बाद की जा सकती है ।
यह क़िस्म उत्तरी मैदानी क्षेत्र के लिए उपयुक्त है । इसकी औसत उपज 400 क्विंटल
प्रति हेक्टेअर है ।
10.पूसा अंकुर - यह
एक अगेती क़िस्म है जो बुआई की तारीख से 75 दिनों में फल तोडने के लायक हो जाते हैं
। फल छोटे, गहरे बैंगनी , अण्डाकार गोल
चमकीले होते हैं । इसकी औसत उपज 350 क्विंटल प्रति हेक्टेअर है ।
बीज बुवाई –
शरद फसल - इस
फसल के बीज मई-जून में बोए जाते हैं और पौध रोपाई जून के अन्त से जुलाई के मध्य तक
की जा सकती है।
बसंत-ग्रीष्म - इस
फसल के बीज नवम्बर के मध्य में बोये जाते हैं और पौध जनवरी के अन्त में तब रोपी
जाती है, जब पाले का भय समाप्त हो जाता है।
वषा ऋतु - इस फसल के बीज फरवरी- मार्च के महीनों में बोए
जाते हैं और पौध की रोपाई मार्च-अप्रैल के महीनों में की जाती है।
नर्सरी तयार करना –
इसके
बीज उठी हुई क्यारियों में लगभग 1 सें०मी० की गहराई पर 5 से 7 सें०मी० के फासलों
पर बनी कतारों में बोने चाहिएँ। एक हेक्टेअर क्षेत्र में रोपाई के लिये लगभग 400
ग्राम बीज पर्याप्त है। संकर क़िस्मों के बीज की मात्रा 250 ग्राम पर्याप्त रहती
है। भारी आकार वाली क़िस्मों के लिये पंक्ति से पंक्ति की दूरी 70 सें०मी० तथा
पौधों से पौधों की दूरी 60 सें०मी० रखी जाती है। छोटे आकार वाली क़िस्मों के लिये
पंक्ति से पंक्ति तथा पौधे से पौधे की दूरी का फासला 60 x 60 या 60x 45 सें०मी० रखा जा सकता है।
बैंगन की रोपाई –
बैंगन
की बोआई के 1 से 1.5 महीनो के दौरान ही
हमे इसके पौधो की रोपाई का काम शुरू कर देना है एवंम जब भी ये
रोपाई का काम शुरू करना होता
है उससे कुछ घंटो पहले ही हमे क्यारियों
को अच्छी तरह पानी से भर देना है जिससे की पोधो को निकालने का कार्य आसान हो
जाये इसके साथ ही हमे इस बात का भी भी
ध्यान रखना है की जहा तक संभव हो सके ये
कार्य हम शाम के समय ही करे और अच्छी पैदावार के लिए दो पौधों और दो कतार के बीच की दूरी 60
सेंटीमीटर रखना अच्छे परिणाम देता है
खाद और उर्वरक –
खाद
व उर्वरक की मात्रा मिट्टी की जांच के हिसाब से ही करनी चाहिए। जहां मिट्टी की
जांच न की हो खेत तैयार करते समय 25 - 30 टन गोबर की सड़ी खाद मिट्टी में अच्छी तरह
मिला देनी चाहिए। इसके साथ-साथ 200 किलो ग्राम यूरिया, 370 किलो ग्राम सुपर फ़ॉस्फ़ेट और 100 किलो ग्राम पोटेशियम सल्फ़ेट का
इस्तेमाल करना चाहिए। यूरिया की एक तिहाई मात्रा और सुपरफ़ॉस्फ़ेट तथा पौटेशियम
सल्फ़ेट की पूरी मात्रा खेत में आखिरी बार तैयारी करते समय इस्तेमाल की जानी चाहिए।
बची यूरिया की मात्रा को दो बराबर खुराकों में देना चाहिए। पहली खुराक पौधे की रोपाई
के तीन सप्ताह बाद दी जाती है|जबकि दूसरी मात्रा पहली मात्रा देने के चार सप्ताह
बाद दी जानी चाहिए। रोपाई के दो सप्ताह बाद मोनोक्रोटोफास 0.04 प्रतिशत घोल, 15 मि०ली० प्रति लीटर पानी का छिड़काव करें।
बेगन की खेती में सिचाई -
जब
आप पौध डालते है जून या जुलाई में सिचाई की आवश्यकता होती है क्योकि बरसात उस समय
नहीं होती है I जब पौध की रोपाई कर देते है, खेत
में फसल तैयार होकर चलने लगती है, उस समय यदि बरसात नहीं
होती है तो आवश्यकता अनुसार आपको सिचाई करनी पड़ेगी लेकिन इसके साथ साथ जब हमारा
अक्टूबर-नवम्बर से आगे जाता है,जब बरसात ख़तम हो जाती है| तो
आवश्यकता अनुसार सिचाई लगातार करते रहना चाहिए अप्रैल तक जबतक आपको फल मिलते रहेI
कीट नियंत्रण –
बैगन
में तन बेधक और फल बेधक दोनों ही कीट लगते
है, इसके बचाव के
लिए कर्बोसल्फान 25 ई. सी. 1.5 लीटर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 800-1000 लीटर
पानी में घॊल कर प्रत्येक 10-15 दिन के अन्तराल पर छिडकाव करते रहना चाहिएI
रोग नियंत्रण –
बुवाई
करने से पहले बीज शोधन कर लेना चाहिए, इसका उपचार थिरम 2.5 ग्राम/
किलोग्राम बीज की दर से मिलकर बुवाई करना चाहिए, लेकिन खड़ी
फसल में कुछ रोग आते है, इसके लिए हम उन पोधो को उखाड़ कर
जला देना चाहिए, इसके अलावा बैगन में 250 मिली लीटर
फास्फोमिडान 800-1000 लीटर पानी में घॊल कर 8-10 दिन के अन्तराल पर छिडकाव करते
रहना चाहिएI
बेगन के फलों की तुड़ाई –
बैंगन
के फल जब मुलायम हों और उनमें ज्यादा बीज न बनें हों तभी उन्हें तोड़ लेने चाहिए।
ज्यादा बड़े होने पर इनमें बीज पड़ जाते हैं| और तब ये उतने स्वादिष्ट नहीं रह
जाते।
बेगन की उपज –
आप
सामान्य जातियों का उपयोग कर रहे है, तो उन का 250-300 कुंतल आपको
पैदावार मिलेगी लिकिन संकर प्रजातियों का 500-600 कुंतल पैदावार मिलती है|
दोस्तों, तो ये थी हमारे किशन भाई बेगन की खेती कैसे करें और अधिक
मुनाफा कैसे कमायें, हमे आशा है आपको बेगन की खेती की जानकारी समझ में आ गई होगी| फिर
भी आपका कोई भी सवाल है या सुझाव है, तो हमें कमेंट बॉक्स में बता सकते हैं,
हमसे पूछ सकते है, दोस्तों इस ब्लॉग पर आए भी खेती बड़ी से सम्बंधित जानकारी दी
जाएगी, जानकारी अच्छी लगे तो इस अपने दोस्तों के शत सोशल साईट पर शेयर जरुर करें,
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