कटहल
भारत का एक महत्वपूर्ण फल है। इसकी बागवानी बिना विशेष देखभाल के की जा सकती है।
कटहल के कच्चे एवं पके दोनों प्रकार के फलों की उपयोगिता है। सब्जियों में कटहल का
काफी महत्वपूर्ण स्थान है।
कच्चे फलों का आचार भी बनाया जाता है और पका फल खाया
जाता है। इसकी सर्वाधिक खेती असम में होती है। इसके अतिरिक्त उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल
और दक्षिण भारत के राज्यों में भी इसकी बागवानी बड़े पैमाने पर की जाती है। छोटानागपुर
एवं संथाल परगना का यह प्रमुख फल माना जाता है। कटहल का उदगम स्थान भारतवर्ष ही
है।
कटहल के लिए
मिट्टी –
इसकी
खेती सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है लेकिन गहरी दोमट तथा बलुई दोमट
मिट्टी इसकी बागवानी के लिए सबसे उपयुक्त है। इसके लिए जल विकास का अच्छा प्रबंध
होना आवश्यक है क्योंकि इनकी जड़े भूमि में अधिक पानी के जमाव को सहन नहीं कर सकती
जिसके फलस्वरूप जल स्तर ऊपर उठने पर पौधे सूखने लगते हैं।
जलवायु –
मध्यम
से अधिक वर्षा एवं गर्म जलवायु वाले क्षेत्र कटहल के खेती के लिए उपयुक्त होते है।
यह देखा गया है कि छोटानागपुर एवं संथाल परगना तथा आस-पास के क्षेत्रों की टांड
जमीन जिसमें मृदा पी.एच.मान सामान्य से थोड़ा कम, संरचना हल्का
तथा जल का निकास अच्छा है, कटहल की खेती के लिए उपयुक्त पायी
गयी है।
कटहल की किस्में
–
कटहल
का प्रसार अधिकतर बीज से होता है। अत: एक ही किस्म के बीज द्वारा तैयार पौधों में
भिन्नता पायी जाती है। इसकी प्रमुख किस्में रसदार, खजवा, सिंगापुरी, गुलाबी, रुद्राक्षी
आदि हैं। सिंगापुरी किस्म एक जल फल देने वाली किस्म है तथा गुणों में फल मध्यम
श्रेणी के होते हैं। इसके अलावे कहीं-कहीं बारहमासी किस्में भी उगायी जाती हैं।
प्रसारण –
इसका
प्रसारण अधिकतर बीज द्वारा किया जाता है। इसका प्रसारण इनाचिंग और गूटी द्वारा भी
सफल पाया गया है। बड़े आकार एवं उत्तम किस्म के कटहल से बीज का चुनाव करना चाहिए।
बीज को पके फल से निकलने के बाद ताजा ही बोना चाहिए।
पौध तैयार करना
–
अच्छे
स्वस्थ पके फलों के बीजों को निकालकर उन्हें एक की.ग्रा. पॉलीथिन की थैली में या
गमलों में बीज को बो कर तैयार किया जाता हैं। जब पौधे 1 से 2 माह के हो जाते हैं
तो उन्हें निश्चित स्थान पर सावधानी से लगा दिया जाता हैं। नवीन रोपित पौधे अधिक
मरते हैं तथा वृक्षों में फूल नहीं आते हैं। इसका कारण यह हैं की स्थानांतरण में
हुई जड़ों की क्षति पूर्ति को पूरा नहीं कर पते हैं। इसलिए कटहल के बीजों की उचित
स्थान पर गड्ढा तैयार कर बुवाई कर देनी चाहिए। एक गड्ढे में कम से कम दो तीन बीज
होना चाहिए। जब पौधे विकसित हो जाए तब एक स्वस्थ व ओजस्वी पौधा छोड़ कर अन्य को
निकाल देना चाहिए।
पौधा लगाना –
भूमि
की अच्छी तरह से जुताई करने के बाद पाटा चलाकर भूमि को समतल बना लेना चाहिए। इसके
बाद 10 से 12 मीटर की दूरी पर 1 मीटर व्यास एवं उतनी ही गहराई का गड्ढा तैयार करना
चाहिए। इन गड्ढों में 20 से 25 किग्रा. गोबर की सड़ी खाद अथवा कम्पोस्ट, 250 ग्राम सिंगल सुपर फ़ॉस्फेट, 500 म्युरियेट ऑफ़
पोटाश,1 किलो नीम की खल्ली तथा10 ग्राम थाइमेट को मिट्टी में अच्छी प्रकार मिलाकर
भर देना चाहिए। रोपाई के लिए उपयुक्त समय जुलाई से सितम्बर है।
खाद एवं
उर्वरक –
कटहल
के पेड़ में प्रत्येक वर्ष फलन होती है अत: अच्छी पैदावार के लिए पौधे को खाद एवं
उर्वरक पर्याप्त मात्रा में देना चाहिए। प्रत्येक पौधे को 20-25 कि.ग्रा. गोबर की
सड़ी हुई खाद, 100 ग्रा. यूरिया, 200 ग्रा.
सिंगल सुपर फास्फेट तथा 100 ग्रा. म्यूरेट ऑफ़ पोटाश प्रति वर्ष की दर से जुलाई माह
में देना चाहिए। तत्पश्चात पौधे की बढ़वार के साथ खाद की मात्रा में वृद्धि करते
रहना चाहिए। जब पौधे 10 वर्ष के हो जाये तब उसमें 80-100 कि.ग्रा. गोबर की खाद,
1 कि.ग्रा. यूरिया, 2 कि.ग्रा. सिंगल सुपर
फास्फेट तथा 1 कि.ग्रा. म्यूरेट ऑफ़ पोटाश प्रति वर्ष देते रहना चाहिए। खाद एवं
उर्वरक देने के लिए पौधे के क्षत्रक के नीचे मुख्य तने से लगभग 1-2 मी. दूरी पर
गोलाई में 25-30 सें.मी. गहरी खाई में खाद के मिश्रण को डालकर मिट्टी से ढक देना
चाहिए।
कटहल की फसल
में सिंचाई –
नवजात
पौधों को कुछ दिन तक बराबर पानी देते रहें। पौधा लगाने के बाद प्रारंभिक वर्ष में
पौधों की गर्मियों में प्रति सप्ताह और जाड़े में 15 दिनों के अंतर पर सिंचाई करनी
चाहिए। बड़े पेड़ों की गर्मी में 15 दिन और जाड़े में एक महीने के अंतर से सिंचाई
करनी चाहिए। नवम्बर-दिसम्बर माह में फूल आते हैं। इसलिए इस अवधि में सिंचाई नहीं
करना चाहिए।
निंदाई-गुड़ाई
–
निंदाई-गुड़ाई
करके पौधे के थाले साफ़ रखने चाहिए। बड़े पेड़ों के बागों की वर्ष में दो बार जुताई
करनी चाहिए। कटहल के बाग़ में बरसात आदि में पानी बिल्कुल नहीं जमना चाहिए।
कीट एवं रोग
–
कटहल
में कीट एवं रोग का प्रकोप बहुत कम होता है। इसमें लगने वाले प्रमुख रोग फल गलन
है। यह रोग ‘राइजोपस आर्टोकारपाई नामक कवक के कारण होता है। इसका
प्रकोप फल की छोटी अवस्था में होता है। इसके कारण कटहल के फल सड़कर गिरने लगते हैं
इस बीमारी की रोकथाम के लिए डाइथेन एम-45 के 2 ग्राम प्रति लीटर में घोलकर 15
दिनों के अंतराल पर 2-3 छिड़काव करना चाहिए। कीटों में मिली बग एवं तना छेदक प्रमुख
हैं।
मिली बग - ये
नये फूल-फल एवं डंठलों का रस चूसते हैं फलस्वरूप फूल एवं फल गिर जाते हैं। इसकी
रोकथाम के लिए मई-जून में बगीचे की जुताई कर देनी चाहिए। इसके उपचार के लिए 3
मिली. इंडोसल्फान प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
तना छेदक - ये
वृक्ष के तने को छेदकर सुरंग बना देते हैं और अंदर के जीवित भाग को खाते हैं। इसका
आक्रमण अधिक होने पर पेड़ की डालियाँ एवं तना सूख जाते हैं। इसके नियंत्रण के लिए
वृक्ष के तना एवं डाली पर जहाँ छेद नजर आये उसे किरासन तेल में रुई भिंगोकर भर दें
और छेद के मुँह को मिट्टी से भर दें।
कटहल की तुड़ाई
–
फलो
कि तुड़ाई उनके उपयोग पर निर्भर करती है सब्जी हेतु तुड़ाई फल जब पूर्ण बृद्धि कर
चूका हो तथा हरा हो तभी करते है आवश्यकता नुसार फलो को ब्रिक्षो से तोड़ते रहते है
पके फलो के लिए तुड़ाई तब करते है जब फलो का रंग हल्का पिला रंग में बदलने लगे
15-16 वर्ष के पूर्ण बिकसित पेड़ो से 200 - 250 फल प्रति पेड़ प्राप्त हो जाते है |
प्रति हेक्टेयर 400 - 500 क्विंटल तक फल प्राप्त हो जाते है |
कटहल की उपज
–
परागण
के तिन माह बाद फल तोड़ने लायक हो जाते है जो कि सब्जी के रूप में उपयोग में लाये
जाते है फल 4-5 माह में पक कर तैयार हो जाते है जो कि पके खाए जाते है कटहल के फल
आमतौर पर मार्च से जून तक मिलते है समुद्रतल से अधिक उंचाई वाले क्षेत्रों में फल
सितम्बर तक मिलते है कटहल के पौधों से प्रत्येक वर्ष एक सामान पैदावार नही होती है
. अच्छी तरह से पूर्ण विकसित 15-16 वर्ष के पौधें से करीव 250 100-400 फल
प्रतिवर्ष मिलते है जिनमे से कुछ फलों का वजन 20 किलो ग्राम तक होता है पैदावार
कटहल कि फसल पर निर्भर करती है फिर भी एक पौध से औसतन किलो ग्राम तक पैदावार होती
है|
कटहल का भंडारण
–
कटहल
के कच्चे फल कमरे के ताप पर 7-8 दिन तक तथा पके फल 3-4 दिन तक भंडारित किये जा
सकते है शीत ग्रहों 11.5 -12.5 से ग्रेड तथा 85-90 प्रतिशत - में . आपेक्षिक
आद्रता पर 6 सप्ताह तक भंडारित कर सकते है|
कांट – छाँट
–
कटहल
के पेड़ को उचित आकार देने के लिए - कांट छाँट कि जाती 2 के अंतर पर कांट वर्षो -
छाँट करनी चाहिए इस समय कमजोर और रोग ग्रस्त तथा एक दुसरे से उलझी व सुखी शाखाओ को
काट देते है काट - छांट अक्तूबर माह में करते है|
दोस्तों, तो ये थी हमारे किशन भाई कटहल की खेती कैसे करें और अधिक मुनाफा कैसे
कमायें, हमे आशा है आपको कटहल की खेती की जानकारी समझ में आ
गई होगी | फिर भी आपका कोई भी सवाल है या सुझाव है, तो हमें कमेंट बॉक्स में बता सकते हैं, हमसे पूछ
सकते है, दोस्तों इस
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