एक बेल पर लगने वाला फल है, जो सब्जी की तरह खाया जाता है। वैकल्पिक नाम 'लउका'
या 'कद्दू' है सब्जी के
रुप में खाए जाने वाली लौकी हमारे शरीर के कई रोगों को दूर करने में सहायक होती
है। यह बेल पर पैदा होती है और कुछ ही समय में काफी बड़ी हो जाती है। लौकी एक
स्वास्थ्यप्रद सब्जी है जिसकी खेती इस क्षेत्र में परवल की ही तरह प्रमुखता से की
जा रही है। गर्मी में तो इसकी खेती विशेष रूप से फायदेमंद है। यही वजह है कि
क्षेत्रीय किसान ग्रीष्मकालीन लौकी की खेती बड़े पैमाने पर किए हैं।
जलवायु -
लौकी की खेती के लिए गर्म और आद्र जलवायु की
आवश्यकता होती है यह पाले को सहन करने में बिलकुल असमर्थ होती हैइसके लिए 18 से 30
डिग्री सेंटीग्रेट तापक्रम होना चाहिएI इसको गर्म एवम तर दोनों मौसम
में उगाया जाता है उचित बढ़वार के लिए
पाले रहित 4 महीने का मौसम अनिवार्य है I लौकी की बुवाई
गर्मी और वर्षा ऋतु में की जाती है अधिक वर्षा और बादल वाले दिन रोग व कीटों को
बढ़ावा देते है|
भूमि व उसकी तयारी –
इसको
बिभिन्न प्रकार की भूमियों में उगाया जा सकता है किन्तु उचित जल धारण क्षमता वाली
जीवांशयुक्त हलकी दोमट भूमि इसकी सफल खेती के लिए सर्वोत्तम मानी गई है वैसे
उदासीन पी.एच मान वाली भूमि इसके लिए अच्छी रहती है नदियों के किनारे वाली भूमि भी
इसकी खेती के लिए उपयुक्त रहती है कुछ अम्लीय भूमि में इसकी खेती की जा सकती है
पहली जुताई मिटटी पलटने वाले हल से करें उसके बाद 2-3 बार हैरो या कल्टीवेटर चलाएँ|
लौकी
की उन्नतशील किस्में –
1. पूसा समर लोंग - यह
किस्म गर्मियों एवं वर्षा दोनों ऋतुओं में अच्छी उपज देती है | इस किस्म की बेल में फल अधिक संख्या में लगते हैं तथा फल 40 से 50
सेंटीमीटर लंबे होते हैं | इसकी उपज 70065 क्विंटल प्रति
एकड़ तक हो जाती है
2. पंजाब लॉन्ग -
यह
किस्म बहुत उपयोगी एवं अच्छी उपज देने वाली है | फल लंबे हरे
कोमल होते हैं | वर्षा ऋतु में यह किस्म लगाना ज्यादा अच्छा
होता है | इसकी उपज 80 से 85 क्विंटल प्रति एकड़ होती है |
3. पंजाब कोमल -
ये
लौकी की अगेती मध्यम आकार की लंबे फल वाली अंगूरी रंग की किस्म है इसके फल लंबे
समय तक ताजे रहते हैं और इस की उपज 150 क्विंटल प्रति एकड़ तक की जा सकती है|
4. पूसा नवीन -
यह
वसंत ऋतु के लिए सबसे उत्तम किस्मों में से एक है | इस किस्म के फल
अन्य किस्मों की तुलना में जल्दी तैयार हो जाते हैं| फल छोटे
लंबे बेलनाकार मध्यम मोटाई के साथ हरे रंग के होते हैं | फल
का औसत भार 800 ग्राम के आसपास होता है | छोटे परिवारों के
लिए इस किस्म के फल बहुत ही आदर्श आकार व वजन के माने जाते हैं |
5. कोयंबटूर -
यह
दक्षिण भारत के लिए सबसे बढ़िया किस्म का है| यह वहां की लकड़ी एवं छारीय
मिट्टी में अच्छी उपज देती है जिसकी आवश्यक उपज 70 कुंतल प्रति एकड़ होती है |
6. आजाद नूतन -
इस
किस्म को काफी प्रसिद्धि प्राप्त है क्योंकि यह बीज की बुवाई के 60 दिन पश्चात ही
फल देना प्रारंभ कर देती है | फल 1 किलो से डेढ़ किलो तक होते
हैं और औसत उपज 80 से 90 क्विंटल प्रति एकड़ तक आती है|
बीज की मात्रा और बीज बुवाई –
सीधी
बीज बोआई के लिए 2.5-3 किलोग्राम बीज 1 हेक्टेयर के लिए काफी होता है. पौलीथीन के
थैलों या नियंत्रित वातावरण युक्त गृहों में नर्सरी उत्पादन करने के लिए प्रति
हेक्टेयर 1 किलोग्राम बीज ही काफी होता है | लौकी की बुवाई ग्रीष्मकालीन फसल
के लिए फरवरी- मार्च व वर्षा कालीन फसल की जून- जुलाई में करना उचित हैं।
बीमारियों की रोकथाम के लिए बीजो को बोने से पूर्व बविस्टीन 2 ग्राम प्रति किलो
बीज के हिसाब से उपचारित कर बोना चाहिए बुवाई का समय इस बात पर निर्भर करता हैं की
इन सब्जियों की बुवाई नदी पेटे में की जा रही हैं या समतल भूमि पर।
खाद एवं उर्वरक –
मृदा
की जाँच कराके खाद एवं उर्वरक डालना आर्थिक दृष्टि से उपयुक्त रहता है यदि मृदा की
जांच ना हो सके तो उस स्थिति में प्रति हेक्टेयर की दर से खाद एवं उर्वरक डालें । गोबर
की खाद ‒ 20‐30, टन नत्रजन ‒ 50 किलोग्राम, स्फुर
‒ 40 किलोग्राम, पोटाश ‒ 40
किलोग्राम पर्याप्त होता हैं| खेत की प्रारंभिक जुताई से पहले गोबर की खाद को समान
रूप से टैक्टर या बखर या मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई कर देनी चाहिए। नाइट्रोजन
की आधी मात्राए फॉस्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा का मि़श्रण बनाकर अंतिम जुताई
के समय भूमि में डालना चाहिए। नत्रजन की शेष मात्रा को दो बराबर भागों में बांटकर
दो बार में 4 ‐ 5 पत्तिया निकल
आने पर और फुल निकलते समय उपरिवेशन (टॅाप ड्रेसिंग) द्वारा पौधो की चारों देनी
चाहिए।
फसल में सिंचाई प्रबंधन –
ग्रीष्मकालीन
फसल के लिए 4‐5 दिन के अंतर सिंचाई की आवश्यकता होती है जबकि
वर्षाकालीन फसल के लिए सिंचाई की आवश्यकता वर्षा न होने पर पडती है। जाड़े मे 10 से
15 दिन के अंतर पर सिंचाई करना चाहिए।
निंदाइ – गुडाई –
आमतौर
पर खरीफ मौसम में या सिंचाई के बाद खेत में काफी खरपतवार उग आते हैं, लिहाजा उन को खुरपी की मदद से 25 से 30 दिनों में निराई कर के निकाल देना
चाहिए. पौधों की अच्छी बढ़वार के लिए 2 से 3 बार निराईगुड़ाई कर के जड़ों के पास
मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए | रासायनिक खरपतवारनाशी के रूप में व्यूटाक्लोरा रसायन की
2 किलोग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से बोआई के तुरंत बाद छिड़कनी चाहिए |
लौकी के फसल की रोगों से सुरक्षा -
लौकी
की फसल में कुदरती कीट रक्षक के नियमित अंतराल पर छिड़काव से फसल पूरी तरह
रोगमुक्त रहती है तथा उपज काफी अच्छी प्राप्त होती है | लौकी की फसल पर कुछ प्रमुख लगने वाले रोगों का कुदरती निदान कैसे करें यह
हम नीचे आपको बता रहे हैं | इसे अपना कर आप अपने खेत में
रोगों से मुक्ति पा सकते हैं|
1. रेड बीटल - यह हानिकारक कीट है जो लौकी के पौधे की
प्रारंभिक वृद्धि के समय होता है और पत्तियों को खाता है जिससे प्रकाशसंश्लेषण
क्रिया धीमी पड़ जाती है | जिसके कारण पौधे में अच्छी
तरीके से वृद्धि नहीं हो पाती है | रेड बीटल की यह सूडी बहुत
खतरनाक होती है | यह भूमि के अंदर पौधों की जड़ों को काट कर
उन्हें नष्ट कर देती है |
रेड बीटल की रोकथाम - रेड बीटल से लौकी की फसल को
सुरक्षा देने के लिए पतंजलि निम्बादि कीट रक्षक अत्यंत प्रभावी है |5 लीटर कीट रक्षक को 40 लीटर पानी में मिलाकर सप्ताह में दो बार छिड़काव
करना चाहिए| छिड़काव के बाद नीम की लकड़ी की राख छिड़कने से
परिणाम और अधिक अच्छा मिलता है|
2. फ्रूट फ्लाई - यह मक्खी लौकी के फलों में प्रवेश कर अंडे देती
है | अंडों से सूंडी निकलती है जो फलों की गुणवत्ता को हानि पहुंचाती है|
जिससे किसान भाइयों को बाजार से अच्छा मूल्य नहीं मिल पाता है|
फ्रूट फ्लाई की रोकथाम - इस
फ्रूट फ्लाई मक्खी से फसल की सुरक्षा के लिए जब लौकी फसल पर फूल निकलने शुरू हो
रहे हो उस समय पतंजलि बायो रिसर्च इंस्टिट्यूट के “अभिमन्यु”
100मिली को 3 लीटर खट्टी लस्सी में 150 ग्राम कापर सल्फेट पाउडर के
साथ 40 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव कर देना चाहिए | यह
छिड़काव प्रति सप्ताह करना आवश्यक है |
3. पाउडरी मिल्ड्यू रोग - यह
रोग एरीसाइफी सिकोरेसिएरम नामक कवक के कारण होता है| इस फंगस की वजह
से लोकी की बेल वा पत्तियों पर सफेद गोलाकार जाल जैसा फैल जाता है जो बाद में
कत्थई रंग में बदल जाता है | इसमें पत्तियां पीली होकर सूख
जाती है|
पाउडरी मिल्ड्यू रोग की रोकथाम - इस
रोग से लौकी की फसल के बचाव के लिए 5 लिटर खट्टे छाछ में 2 लीटर गोमूत्र, 30 लीटर पानी में मिलाकर प्रतिदिन 4 दिन के अंतराल पर छिड़काव करते रहे |
2 सप्ताह पश्चात फसल पाउडरी मिल्ड्यू रोग से होने वाली हानी से बच
जाती है|
4. लौकी का एन्थ्रेक्नोज रोग - लौकी
की फसल में एन्थ्रेक्नोज रोग क्लेटोटाईकम नामक फंगस के कवक के कारण होता है| इस रोग के कारण पत्तियों एवं फलों पर लाल-काले धब्बे बन जाते हैं| जिससे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया बाधित होती है| इसके
फलस्वरूप पौधा स्वस्थ नहीं रह पाता है|
एन्थ्रेक्नोज रोग की रोकथाम - इस
रोग की रोकथाम के लिए 5 लीटर गोमूत्र में
2 किलोग्राम अमरूद अथवा आडू के पत्ते उबालकर ठंडा कर, छाने, उसमे 30 लीटर पानी मिलाकर तीन-तीन दिन के
अंतराल पर लगातार छिड़काव करे|
फलों की तोड़ाई व उपज –
फलों
की तुडाई उनकी जातियों पर निर्भर करती है। फलों को पूर्ण विकसित होने पर कोमल
अवस्था में किसी तेज चाकू से पौधे से अलग करना चाहिए। प्रति हेक्टेयर जून‐जुलाई और जनवरी‐मार्च वाली फसलों में क्रमश 200 से
250 क्विंटल और 100 से 150 क्विंटल उपज मिल जाती है।
दोस्तों, तो ये थी हमारे किशन भाई लौकी की खेती कैसे करें और अधिक
मुनाफा कैसे कमायें, हमे आशा है आपको लौकी की खेती की जानकारी समझ में आ गई होगी |
फिर भी आपका कोई भी सवाल है या सुझाव है, तो हमें कमेंट बॉक्स में बता सकते
हैं, हमसे पूछ सकते है, दोस्तों इस ब्लॉग पर आए भी खेती बड़ी से सम्बंधित जानकारी
दी जाएगी, जानकारी अच्छी लगे तो इस अपने दोस्तों के शत सोशल साईट पर शेयर जरुर
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Plant Fertilizers
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